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कथानक
कथा-साहित्य कर दी है। यद्यपि इस प्रयासमे कही-कही उन्हें कथाकारके पदका उल्लयन करना पड़ा है, फिर भी कथाकी गतिम रुकावट नहीं आने पायी है। चरित्र चित्रणकी दृष्टिसे यह कथा सुन्दर है । खनककुमारका चारित्रिक विकास आरम्भसे ही दिखलाया गया है। इसमे वर्माजीने नवीन भावकी योजना की है। पौराणिक आख्यान
है, को कल्पना-द्वारा चटपटा बनाकर तुस्वादु कर दिया
"है। महासती सीताके उज्वल चरित्रकी मॉकी-द्वारा प्रत्येक पाठक अपने हृदयको पवित्र कर सकता है।
मिथिला नगरीकी रानी विदेशाके गर्भसे युगल सन्तान-एक साथ दो बालक उत्पन्न हुए । सप और थालीकी एक ही साथ झनकार हुई।
अन्तःपुरम और बाहर आनन्ट मनाया जाने लगा। 16 बाल सूर्य और चन्द्र के समान उनकै तेजको देखकर राजा-रानीके आनन्टका ठिकाना न रहा। पर क्षणभर पहले जहाँ आनन्द. की लहरे उत्पन्न हो रही थी, वही हृदय-वेधी हाहाकार मुनाई पड़ने लगा। ऑखोके तारे पुत्रको कोई बढी चतुगईमे चुराकर ले गया। अनुमन्धान करनेपर भी बालकका पता न लग सग।
कन्याका नाम रीता रखा गया । जनक, युवती होनेपर सीताकी अप्रतिम रूप-रागिको देखकर उसके तुल्य वर प्रान करने के लिए चिन्तित थे । जनक्ने योग्य वरकी तलाग परनके लिए नन्त्री राजमारो देसा, पर सीताके योग्य एक भी नहीं जचा।।
वरवर देशके मटेच्छराजाने उपद्रयांग टमन परने लिए जनक महाराजने अपनी सहायताके लिए अयोधान्पति महागज दगगरी बुलाए । जब अयोध्याम सेना जनपकी गायता लिल, मन्थान रन लगी तो रामने आग्रहपूर्वक महाराज ना गम गानेग अगति ले ली। मिथिला पहुंचकर रामने मंच राजार भारमन ाि और
१. प्रमश-मारमानन्द जैन हैक्ट मोमाइटी, अंपाला नहर ।