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पान्न
हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन इस उपन्यासके प्रधान पात्र हैं-पवनञ्जय, अंजना, वसन्तमाला और प्रहस्त । गौण पात्र है-प्रह्लाद, केतुमती, महेन्द्र और प्रतिसूर्य आदि । - इनके चरित्र-चित्रणमे लेखकका रचना-कौशल चमक
उठा है। नायक पवनञ्जयका चित्रण एक अहभावसे भरे ऐसे पुरुषकै रूपमे किया गया है जो नारीकी कमीका अनुभव तो करता है, पर अमिमानके कारण कुछ न कहकर भीतर ही भीतर जलता हुआ उन्मत्त-सा घूमता है । पवनञ्जय अजनाके सौन्दर्यको देखकर मुग्ध तो हो जाते है किन्तु अजना विद्युत्प्रम-से प्रेम करती है इस आशकाने उनके अहभावको ठेस पहुंचाई और वह तब तक धुलते रहे जब तक उनके अन्तरकी मानवता उस अहंभावका बन्धन न तोड सकी । यह स्वच्छन्द वातावरणमे अकेले घूमनेके इच्छुक तथा स्वभावसे हठी है। अपने 'अहं' को आच्छादित करनेके लिए दर्शनकी व्याख्या, विश्व-विजयकी इच्छा तथा मुक्तिकी कामना करते है । 'अह'के ध्वंसके साथ ही उनकी मानवता दोत हो उठती है। जब तक वह नारीकी महत्ताको समझनेमे असमर्थ रहते है, तब तक उनमे पूर्णता नहीं आ पाती । अहके विनाश तथा मानवताकै विकासके साथ ही वे नारीके वास्तविक स्वरूपसे परिचित हो जाते हैं, उनके चरित्र में पूर्णता आ जाती है। रावण-वरुणके युद्ध-प्रसगमे उनकी वीरताका साकाररूप दृष्टिगोचर होता है। अंजनाका सामीप्य प्राप्तकर वे आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श मित्र एव आदर्श पिता बन जाते हैं। पवनञ्जयको लेखकने हृदयसे भावुक, मस्तिष्कसे विचारक, स्वभावसे हठी और शरीरसे योद्धा चित्रित किया है। ____ अजना तो इस उपन्यासकी केन्द्रबिन्दु ही है। इसका चित्रण लेखकने अत्यन्त मनोवैज्ञानिक ढंगसे किया है। पातिव्रतका आदर्श अस्त्र ले सहज प्रतिमासे युक्त वह हमारे समक्ष प्रस्तुत होती है। पति-द्वारा त्यक्त होनेका उसे शोक है, पर उसके हृदयमे धैर्यकी अजस्त्र धारा अनवरत प्रवाहित