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________________ उपन्यास २-पुराणके पवनञ्जय मानसरोवरसे प्रस्थान करनेपर पुनः पिताकी आगासे लौटे, पर उपन्यास-लेखकने प्रहस्त मित्र-द्वारा उन्हे लौटवाया है। ३-वरुण और रावणके युद्ध-प्रसगमे पुराणकारने वरुणको दोपी ठहराकर पवनञ्जय-द्वारा रावणको सहायता दिलायी है, पर मुक्तिदूतके लेखकने रावणको अपराधी बताकर पवनञ्जय-द्वारा वरुणको सहायता दिलायी है और रावणको परास्त कराया है। ___४-केतुमती-द्वारा निर्वासित होकर महेन्द्रपुर पहुँच जानेपर अजना और वसन्तमाला दोनोंका राजा महेन्द्र के पास जानेका पुराणमे उल्लेख किया गया है, परन्तु वीरेन्द्रजीने केवल वसन्तकै जानेका ही उल्लेख किया है। इस कल्पना-द्वारा उन्होने अजनाके सहज मानकी रक्षा की है। अजनाकी खोजमे व्यस्त पवनक्षय और प्रहस्तके वर्णनमे भी दोनोके महेन्द्रपुर जानेका उल्लेख पुराणकारने किया है, पर मुक्तिदूतमे केवल प्रहस्तके जानेका कथन है। ५-कुमारपवनञ्जय जब अजनाकी खोजमे गये, तव उनके साथ प्रिय हाथी अम्बरगोचरके भी रहनेका वर्णन पुराणमे मिलता है, पर मुक्तिदूतमे इसको स्थान नहीं दिया गया है। ____ इस प्रकार लेखकने कथाकी पौराणिकताकी सीमामै कल्पनाको मुक्त रखा है, जिससे कथावस्तुमे स्वभावतः सुन्दरता आ गयी है। किन्तु एक बात इसके कथानकमे बहुत खटकती है, और वह है कथानकका अधिक विस्तार । यही कारण है कि जहां-तहाँ कथावस्तुमे शिथिलता आ गयी है । आरम्मके प्रासाद-सौन्दर्य वर्णनम तथा अजनाके साज-सजाके वर्णनमे लेखकने रीतिकालका अनुसरण किया है। यदि यह वर्णन थोड़ा सक्षिप्त होता तो उपन्यासकी सुन्दरता और निखर उठती। इन प्रसगोको छोड अन्य प्रसंगोंका वर्णन संक्षिप्त, सरस तथा रमणीय है। इसी कारण सम्पूर्ण उपन्यासमे नवीनता, मधुरता और अनुपम कोमलता आ गयी है।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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