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हिन्दी-जैन-साहित्य परिशीलन इसकी शैली प्रौढ़ है। काव्यका सौन्दर्य झलकता है तथा भावनाओंको घटनाओंके साथ साकार रूपमे दिखलाया गया है। प्राकृतिक चित्रों द्वारा कहीं-कही भावोंको साकार बनानेकी अद्भुत चेष्टा की गयी है । इसमें अलंकारोंका आकर्षक प्रयोग, चित्रमय वर्णन, अभिनयात्मक कथोपकथन विद्यमान है जिससे प्रत्येक पाठकका पूरा अनुरजन करता है । मापा विशुद्ध और परिमार्जित है, मुहावरे और सृक्तियोंके प्रयोगने भापाको और भी जीवट बना दिया है।
श्री वीरेन्द्रकुमार जैन एम० ए०का यह श्रेष्ठ उपन्यास है। इसमें कुतूहलवृत्ति और रमणवृत्ति दोनोंकी परितुटिक लिए घटना-चमत्कार और
. भावानुभूतिका सुन्दर समन्वय किया गया है। इसमें 'मुक्तिदूत
पवनंजयके आत्मविकास और आत्मसिद्धिकी कथा है। 'अहं' के अन्धकारागारसे पुरुपको नारीने अपने त्याग, बलिदान, वात्सल्य और आत्मसमर्पणके प्रकाश-द्वारा मुक्त किया है।
मुक्तिदूतका कथानक पौराणिक है। कुमार पवनजय आदित्यपुरके महाराज प्रहलादके एकमात्र पुत्र है । एक वार माता-पितासहित पवनजय
कैलाशकी यात्रासे लौटकर मार्ग, मानसरोवरके तट* पर ठहर गये। एक दिन मानसरोवरकी अपार जलराशिम क्रीड़ा करते हुए पवनंजयने पासके श्वेत महलकी अष्टालिकापर राजा महेन्द्रकी पुत्री अजनाको देखा, उसकी कोमल आह सुनी और लौट आये प्रेमके मधुभारसे दबकर । उनकी व्यथा समझकर उनका अभिन्न मित्र प्रहस्त उन्हें अंजनाके राज्य-प्रासादपर विमान द्वारा ले गया। वहाँ सखियोंमे हास-परिहास चल रहा था। अंजना पवनजयके यानमें ही निमग्न थी। उसकी अभिन्न सखी वसन्तमाला पवनंजयकी प्रशसा कर रही थी। पवननयकी प्रशसासे चिढ़कर मिश्रकेशी नामकी अजनाकी
१. प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, काशी।
कथानक