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उपन्यास
नहीं । पाप-पुण्यका महत्त्व इसकी दृष्टिमे नगण्य है। विचार और विवेकसे इसे छुआ-छूत नहीं है।
उदयसिह एक साहूकारका पुत्र है, किन्तु वासनाने इसकी बुद्धि भ्रष्ट कर दी है। यह बलात्कारको बुरा नहीं मानता । लेखकने इन सभी पुरुष पात्रोके चरित्र-चित्रणमे औपन्यासिक कलाकी उपेक्षा उपदेशक या धर्मशान होनेका ही परिचय दिया है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणसे किसी भी पात्रका चरित्र चित्रित नहीं हुआ है।
स्त्रीपात्रोंके चरित्रमे एक ओर सुशीला जैसी आदर्श रमणीका चारित्रिक विकास अकित किया गया है, तो दूसरी ओर रामकुँअरि जैसी दुराचारिणी नारीका चरित्र । दोनो ही चरित्रोका विश्लेषण यथार्थ रूपसे किया गया है तथा पाठकोंके समक्ष जीवनके दोनो ही पक्ष उपस्थित किये हैं। ___ यह उपन्यास एक ओर आदर्श जीवनकी झॉकी देकर नैतिक उत्थान का मार्ग प्रस्तुत करता है तो दूसरी ओर कुत्सित जीवनका नंगा चित्र खीचकर कुपथगामी होनेसे रोकनेकी शिक्षा देता है। सदाचारके प्रति आकर्पण और दुराचारके प्रति गर्हण उत्पन्न करनेमे यह रचना समर्थ है। कलाकी दृष्टिसे भी यह उपन्यास सफल है। इसमे भावनाएँ सरस, स्वाभाविक और हृदयपर चोट करनेवाली हैं। कथाका प्रवाह पाठकके उत्साह और अमिलापाको द्विगुणित करता है। समस्त जीवनके व्यापार शृखलाबद्ध और चरित्र-निर्माणके अनुकूल है । सबसे बड़ी विशेषता इस उपन्यासकी यह है कि इसका कलेवर व्यर्थके हाव-भावोंसे नही भरा गया है किन्तु जीवनके अन्तर्वाह्य पक्षोका उद्घाटन बड़ी खूबीसे किया गया है।
धार्मिक शिक्षाओका वाहुल्य होनेपर भी कयाकी समरसतामे विरोध नहीं आने पाया है। आरम्भसे अन्ततक उत्सुकता गुण विद्यमान है। हॉ, धार्मिक सिद्धान्त रसानुभूतियोमे बाधक अवश्य है ।