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उपन्यास
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सखीने हेमपुर के युवराज विद्युत्प्रभकी प्रशसा की । अजना पवनंजयके ध्यानमं लीन होनेके कारण कुछ भी नही सुन सकी । ध्यान टूटनेपर हर्ष के आवेशमे उसने अपनी सखियोंको नृत्य-गान करनेकी आज्ञा दी । अजनाकी इस तन्मयता और भाव-विभोरताका अर्थ पवनंजयने यह लगाया कि यह विद्युत्प्रमसे प्रेम करती है, इसीसे उसका नाम सुनकर नृत्य - गानकी आज्ञा दे रही है । अपने नामका अपमान सहन न कर सकनेके कारण क्रोधित हो उलटे पॉच वहाँसे वे दोनों चले आये और प्रातः काल माता-पिता से बिना कुछ कहे ससैन्य प्रस्थान कर दिया ।
अनाके पिता महेन्द्र पहले ही अजनाकी शादी पवनञ्जयसे नियत कर चुके थे । अतः उनके कूच करनेसे वह अत्यन्त दुःखी हुए । महाराज प्रह्लादको जब यह समाचार मिला तो वह प्रहस्तको साथ लेकर पुत्रको लौटाने गये । प्रहस्तके द्वारा अधिक समझाये जानेपर पवनञ्जय वापस लौट आये । उन्होंने अजनाके साथ विवाह भी कर लिया, पर आदित्यपुर लौटनेपर उसका परित्याग कर दिया । स्वय ही पवनञ्जय अपने अहभाव के कारण उन्मत्त रहने लगे। माता-पिता, प्रजा, प्रहस्त और अजना सभी दुःखी थे, विवश थे । यद्यपि माता-पिताने पुत्रसे दूसरा विवाह करने का भी आग्रह किया, पर उन्होने अस्वीकृत कर दिया ।
पातालद्वीपके अभिमानी राजा रावणने एकबार वरुणद्वीपके राजा वरुणपर आक्रमण किया और अपनी सहायताके लिए माण्डलिक राजा प्रह्लादको बुलाया । पिताको रोककर स्वयं पवनञ्जयने प्रस्थान किया । मार्गमै उन्हें मगल-कलश लिये अजना मिली, वे उसे धिक्कार कर चले गये । मार्गमे जब सैन्य शिविर मानसरोवर के तटपर स्थिर हुआ तो एक चकवीको चकवेके वियोगमे तड़फते देख वह वेदनासे भर गये और
नाकी वेदना याद आ गयी। उसी समय प्रहस्तके साथ विमान द्वारा अजना महलमे गये और प्रातःकाल शिविरमे लौट आये। अंजना-द्वारा