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किया है । प्राचीन ककर नवीन शैली, हत्यक सम्बन्धमे बताए । जैन
माधुनिक गद्य साहित्य कार्य कभी नहीं हो सका। जैसे गधेका सींग, ऐसा प्रमाण तुमारे कहने बाँधनेवाला तो है, परन्तु साधनेवाला कोई भी नहीं, कर हठ करके स्वकपोल कल्पितही मानोगे तो परीक्षावालोंकी पंक्तिमें कदेभी नहीं गिने जानोगे।
-जैनतवादर्श जैनगद्य साहित्यका विकास उपन्यास, कथा-कहानी, नाटक, निबन्ध और भावात्मक गद्यके रूपमे इस शताब्दीमे निरन्तर होता जा रहा है। धार्मिक रचनाओं के सिवा कथात्मक साहित्यका प्रणयन भी अनेक लेखकोने किया है। प्राचीन कथाओका हिन्दी गद्यमें अनुवाद तथा प्राचीन कथानकोंसे उपादान लेकर नवीन शैलीमें कथाओंका सुजन भी विपुल परिमाणमे किया गया है । जैन कथा साहित्यके सम्बन्धमे बताया गया है कि-"सभी जैन वहानियॉ धर्मोपदेशका अंग माननी चाहिए । जैनधर्मोपदेशक धर्मोपदेशके लिए प्रधान माव्यम कहानीको रखता था। इन कहानियों में मनुष्यके वर्तमान जीवकी यात्राओका ही वर्णन नहीं रहता, मनुष्यकी आत्माकी जीवन-कथाका भी वर्णन मिलता है। आत्माको शरीरसे विलय कैसे-कैसे जीवन यापन करना पड़ा, इसका भी विवरण इन कहानियोमें रहता है। कर्मके सिद्धान्तमे जैसी आस्था और उसकी जैसी व्याख्या जैन कहानियोंमे मिलती है, उतनी दूसरे स्थानपर नहीं मिल सकती। कहानी अपने स्वाभाविक रूपको अक्षुण्ण रखती है, यही कारण है कि जैन कहानियोंमे बौद्ध जातकोंकी अपेक्षा लोकवार्ताका शुद्ध रूप मिलता है । अपने धार्मिक उद्देश्यको सिद्ध करनेके लिए जैन कथाकार साधारण कहानीकी स्वाभाविक समातिपर एक केवलीको अथवा सम्यग्दृष्टिको अस्थित कर देता है, वह कहानीमें आये दुःख-सुखकी
१. देखिये-'हर्टल'का निबन्ध, 'भान दि लिटरेचर ऑव दिश्वेताम्बरान भाव गुजरात।
२. ए. एन. उपाध्ये, बृहत्कथाकोपको भूमिका।