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हिन्दी - जैन साहित्य-परिशीलन
व्याख्या उनके पिछले जन्मके किमी कर्मके सहारे कर देता है। इसी विधान के कारण जैन कहानियोंका जातकोंसे मौलिक अन्तर हो जाता है । यद्यपि रूप-रेखामें ये कहानियों भी बौद्ध कहानियोंके समान है, तो भी गैलिक अन्तर यह हो जाता है कि जैन कहानियाँ वर्तमानको प्रमुखता देनी हैं। भूतकालको वर्तमानके दुःख-सुखकी व्याख्या करने और कारण निर्देशके लिए ही लाया जाता है । बौद्ध जातकॉम वर्तमान गौण है, भूतकाल – पूर्वजन्मकी कहानी प्रमुख होती है। जैन कहानियांक इसी भावके कारण उनमें कहानीके अन्दर कहानी मिलती है, जिसमें कहानी नटिल हो जाती है । हिन्दीमें जैन कहानियों लिखी गयीं हैं, किन्तु वे प्रकाशमें नहीं आ सकी हैं।""
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जैनकथा साहित्यकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें पहले कथा मिलती है, पश्चात् धार्मिक या नैतिक ज्ञान जैसे अंगूर खानेवालेको प्रथम रस और स्वाद मिलता है, पश्चात् वल-वीर्य । जो उपन्यास या कहानी विचार- बोझिल और नीरस होती है तथा जहाँ कथाकार पहले उपदेशक बन जाता है, वहाँ कलाकारको कथा कहनेमें कभी सफलता नही मिल सकती | जैन कहानियोंमें कथावस्तु सर्वप्रथम रहती है, पञ्चात् धर्माप्रदेश या नीति । इनमें समान विकास और लोकप्रवृत्तिकी गहरी छाप विद्यमान है । बल्लुतः जैन कथाएँ नीतिबोधक, मर्मदाशी और आनके युगके लिए नितान्त उपयोगी हैं। इनमें व्यापक लोकानुरंजन और लोकमंगलकी क्षमता है |
उपन्यास
इस शताब्दी में कई जैन लेखकोंने पुरातन जैन कथानकोंको लेकर मरस और रमणीय उपन्यास लिखे हैं । इन उपन्यासोंमें जनताकी आय्यात्मिक आवश्यकताओंका निरुपणकर उसके मात्रजगत्के घरातल्को
१. व्रतलोक साहित्यका अध्ययन ।
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