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हिन्दी-जैन-साहित्य परिशीलन क्चनिकाएँ ; जयपुर निवासी पारसदासने जानसूर्योदय और सारचनुर्विगतिकाकी वचनिकाएँ; मन्नालाल बैनाड़ाने स० १९१३में प्रयु म्न चरित्रकी बचनिका; शिवचन्द्रने नीतिवाक्यामृत, प्रश्नोत्तरीश्रावकाचार और तत्त्वार्थसूत्रकी वचनिकाएँ एव शिवजीलालने चर्चासंग्रह, बोधसार, दर्शनसार और अध्यात्मतरगिणी आदि अनेक ग्रन्योंकी वनिकाएँ लिखी है। यहाँ नमूनेके लिए पडित सदासुख, शिवनीलाल आदि दो-एक वचनिकाकारोंके गद्यको उद्धृत किया जाता है___"बहुरि दयादान ऐसा जानना जो बुभुक्षित होय, दरिद्वी होय, अन्धा होय, लूला होय, पॉगला होय, रोगी होय, अशक्त होय, वृद्ध होय, वालक होय, विधवा होय, तथा बावरा होय, अनाथ होय, विदेशी होय, अपने यूथते संगत विछुड़ि आया होय, तथा बन्दीगृहमें रुक्या होय, बन्ध्या होय, दुष्टनिका आतापत भागि आया होय, लुट आया होय, नाका कुटुम्ब मर गया होय, भयवान होय ऐसा पुरुप होहू वा स्त्री होह तथा बालक होहू वा कन्या तथा तिर्यच होहू, इनकी क्षुधा तृपा शीत उष्ण रोग तथा वियोगादिकनिकरि दुखित जानि करुणामावर्त भोजन वस्त्रादिक दान देना सो करुणा दानमें उनका नाति कुल आचरणादिक जानि यथायोग्य दान करना।"
-रस्नकरण्ढ श्रावकाचार, सदासुख वचनिका वचनिकाओंकी भापापर हॅढारी मापाका प्रभाव स्पष्ट रूपसे विद्यमान है । स्वतन्त्र रचनाओम मुनि आत्मारामकी रचनाएँ भापाकी दृष्टिसे अधिक परिमार्जित है । यद्यपि इनकी भापापर राजस्थानी और पनाबी भापाका प्रभाव है, तो भी भापामें भावोंको अभिव्यक्त करनेकी पूर्ण क्षमता है। _ "यह जो तुम्हारा कहना है सो प्यारी भार्या, वा मिन्न मानेगा, परन्तु प्रेक्षावान् कोई भी नहीं मानेगा; क्योंकि इस तुमारे कहनेमें कोई भी प्रमाण नहीं, परन्तु निसका उपादान कारण नहीं हो