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पुरातन गद्य
दोइन्च्यारि पड़े तो जानि न जाई, पासन आला न होइ । जब बारम्बार भाइये तव आला होई, तैसे स्पर्शादि इन्द्री ४ तिनके सनमधि जे परमानु पनपं है ते तल्काल व्यञ्जनावग्रह करि नाहिं प्रगट होते।"
उपर्युक उद्धरणते स्पष्ट है कि आला, वासन जैसे देशज शब्दोका प्रयोग एवं सनमधि जैते अपभ्रंश शन्दोंका प्रयोग इनके गद्यमें बहुलवासे पाया जाता है। शब्दोकी तोड़-मरोड़ भी यथास्थान विद्यमान है।
हिन्दी वचनिककारोम पाण्डे हेमराजका नाम अग्रगण्य है। इन्होने १७वीं शतीके अन्तिम पादमें प्रवचनसार टीका, पंचास्तिकाय टीका तथा मक्तामर भाषा, गोम्मटसार भाषा और नयचक्रकी वचनिका ये पॉच रचनाएँ लिखी हैं । इनके गद्यकी भाषा व्यवस्थित और मधुर है । टीकाओकी गैली पुरातन है तथा संस्कृत टीकाकारोंके अनुसार खण्डान्वय करते हुए लेखकके विषयका स्पष्टीकरण किया है। यद्यपि अनेक स्थलोपर गद्यमे शिथिलता है, तो मी भावाभिव्यक्तिी कमी नहीं आने पायी है । मापाम पंडिताऊपन इतना अधिक है, जिससे गद्यका सारा सौन्दर्य, विकृत-सा हो गया है । इनके गद्यका नमूना निम्न है___ "किल निश्चय करि, अहमपि मैं जुही मानतुंग नाम आचार्य सो तं प्रथमं जिनेन्द्र स्तोप्ये, सो जुहै प्रथम जिनेन्द्र श्रीआदिनाथ ताहि स्तोप्ये-स्वगा। कहाकारि स्तोत्र करौंगो, निनपादयुगं सम्यक् प्रणम्य-तिन जुहें भगवान तिनके पाद युग दोई चरण कमल ताहि सम्यक् कहिये, भली-भाँति मन-वच कायाकरि प्रणन्य नमस्कार करिकै। कैसो है भगवान्का चरण द्वय ।...भक्तिवंत जुहै अमर देवता, तिनके नन्त्रीभूत जु है मौलि मुकुट तिन विलु है मणि, तिनकी जु प्रभा तिनका उद्योतक है। यद्यपि देवमुकुटनि उद्योत कोटि सूर्यवत है, तथापि भगवान्के चरण नखकी दीप्ति भाग, वे मुकुट प्रभारहित ही हैं।" ___ पाण्डे हेमरान्ने हो, भौरि, उ है, सो जैसे ब्रजभाषाके शब्दोका भी प्रयोग किया है। क्रियापद बन और हॅदारी दोनो ही भाषामोसे ग्रहण