________________
नूतन प्रवृत्ति हैं। कुछ ऐसे कवि अवश्य है, जिनकी रचनाओंमे गूढ भाव अवश्य पाये जाते है । शोक, आनन्द, वैराग्य, .कारुण्य आदि भावोकी अमिव्यञ्जना रे, हाय, आह, आदि शब्दोको प्रयुक्त कर की है।
इस कोटिमे मुख्तार सा० की 'मेरी भावना भगवन्त गणपति गोयलीयकी 'नीच और अछूत', कवि चैनसुखदासकी 'जीवनपट', कवि सत्यभक्तकी 'झरना', कवि कल्याणकुमार 'शशि'को 'विश्रुतजीवन', कवि भगवत्त्वरूपकी 'सुख शान्ति चाहता है मानव', कवि लक्ष्मीचन्द्र एम० ए० की 'सजनी ऑसू लोगी या हास', कवि बुखारिया 'तन्मय की 'मै एकाकी पथभ्रष्ट हुआ', अमृतलाल चंचलकी 'अमरपिपासा', पुग्कलकी 'जीवन दीपक', अक्षयकुमार गगवालकी 'हलचल', मुनिश्री अमृतचन्द्र 'सुधा की 'अन्तर' और 'बढ़े जा', सुमेरचन्द्र 'कौशल की 'जीवन पहेली' और 'आत्म-निवेदन', वालचन्द्र विशारद की 'चित्रकारसे' और 'ऑसूसे, श्रीचन्द्र एम० ए० की 'आत्मवेदन' एवं कवि 'दीपक' की 'झनकार
आदि कविताएँ प्रमुख हैं। कवि बुखारिया और पुष्कल मावात्मक रचनाओके अच्छे रचयिता है।
आचारात्मक कविताएँ पत्र-पत्रिकाओम प्रकाशित होती रहती है | इस कोटिकी कविताओमे प्रायः काव्यत्वका अभाव है।
गेयात्मक रचनाओम मानवकी रागात्मिका वृत्तिको अधिकसे अधिक रूपमें जाग्रत करनेकी क्षमता, कल्पना-द्वारा भावोत्तेजनकी शक्ति और नादसौन्दर्य युक्त संगीतात्मकता अवन्य पायी जाती है। गेय काथ्योम संगीतका रहना परम आवश्यक है। जिस काव्यमे संगीत नहीं, वह भावगाम्भीर्यके रहनेपर भी गेयात्मक नहीं हो सकता । वस्तुतः गेयकाव्योम अन्तर्जगत्का स्वाभाविक परित्फुरण रहता है और रसोद्रेक करनेके लिए कवि स्वर और लयके नियमित आरोह-अवरोहसे एक अद्भुत संगीत उत्पन्न करता है, जिससे श्रोता या पाठक अनिर्वचनीय आनन्दकी प्राप्ति करता है।