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हिन्दी - जैनसाहित्य-परिशीलन
निम्न ग्रन्थोंकी टीकाएँ लिखी है। ये इस युगके सबसे बड़े टीकाकार, सिद्धान्तमर्मज्ञ और अलौकिक विद्वान् थे ।
गोम्मटसार [जीवकाण्ड ]- सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका | यह संवत् १८१५
पूर्ण हुई ।
गोम्मटार [कर्मकाण्ड ]
लब्धिसार--- पूर्ण हुई।
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यह टीका संवत् १८१८ मे
क्षपणासारवचनिका सरस है ।
त्रिलोकसार --- इस टीकामें गणितकी अनेक उपयोगी और विद्वत्तापूर्ण चर्चाएँ की गयी है ।
आत्मानुशासन – यह आध्यात्मिक सरस संस्कृत ग्रन्थ है, इसकी Tafter संस्कृत टीकाके आधार पर है ।
पुरुपार्थसिद्ध्युपाय - इस ग्रन्थकी टीका अधूरी ही रह गयी । अर्थसंदृष्टि - इसे पडितजीने बड़े परिश्रम और साधनासे लिखा है । गोम्मटसारादि सिद्धान्त ग्रन्थोंका अध्ययन कितना विशाल था, यह इसते स्पष्ट होता है ।
आध्यात्मिकपत्र ——यह रचना रहस्य पूर्ण चिट्टीकै नाममे प्रसिद्ध हैं और वि० सं० १८११ मे लिखी गयी है। यह एक आध्यात्मिक रचना हैं । गोम्मटसारपूजा - गोम्मटसारकी टीकाके उपरान्त इस पूजाकी रचना की गयी है ।
मोक्षमार्ग प्रकाश-यह एक महत्त्वपूर्ण दार्शनिक और आव्यात्मिक ग्रन्थ है । इसमें नौ अध्याय हैं । जैनागमका सार रूप है । एक ग्रन्थकै स्वाध्यायसे ही बहुत ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है ।
टीकाकारके अतिरिक्त पंडितजी कवि भी थे । ग्रन्थोके अन्तमें बो प्रचस्तियाँ दी हैं, उनसे इनके कविहृदयका भी पता लग जाता है । लब्धिसारकी टीकाकै अन्तमें अपना परिचय देते हुए लिखते हैं