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________________ २३० हिन्दी - जैनसाहित्य-परिशीलन निम्न ग्रन्थोंकी टीकाएँ लिखी है। ये इस युगके सबसे बड़े टीकाकार, सिद्धान्तमर्मज्ञ और अलौकिक विद्वान् थे । गोम्मटसार [जीवकाण्ड ]- सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका | यह संवत् १८१५ पूर्ण हुई । गोम्मटार [कर्मकाण्ड ] लब्धिसार--- पूर्ण हुई। "3 " यह टीका संवत् १८१८ मे क्षपणासारवचनिका सरस है । त्रिलोकसार --- इस टीकामें गणितकी अनेक उपयोगी और विद्वत्तापूर्ण चर्चाएँ की गयी है । आत्मानुशासन – यह आध्यात्मिक सरस संस्कृत ग्रन्थ है, इसकी Tafter संस्कृत टीकाके आधार पर है । पुरुपार्थसिद्ध्युपाय - इस ग्रन्थकी टीका अधूरी ही रह गयी । अर्थसंदृष्टि - इसे पडितजीने बड़े परिश्रम और साधनासे लिखा है । गोम्मटसारादि सिद्धान्त ग्रन्थोंका अध्ययन कितना विशाल था, यह इसते स्पष्ट होता है । आध्यात्मिकपत्र ——यह रचना रहस्य पूर्ण चिट्टीकै नाममे प्रसिद्ध हैं और वि० सं० १८११ मे लिखी गयी है। यह एक आध्यात्मिक रचना हैं । गोम्मटसारपूजा - गोम्मटसारकी टीकाके उपरान्त इस पूजाकी रचना की गयी है । मोक्षमार्ग प्रकाश-यह एक महत्त्वपूर्ण दार्शनिक और आव्यात्मिक ग्रन्थ है । इसमें नौ अध्याय हैं । जैनागमका सार रूप है । एक ग्रन्थकै स्वाध्यायसे ही बहुत ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । टीकाकारके अतिरिक्त पंडितजी कवि भी थे । ग्रन्थोके अन्तमें बो प्रचस्तियाँ दी हैं, उनसे इनके कविहृदयका भी पता लग जाता है । लब्धिसारकी टीकाकै अन्तमें अपना परिचय देते हुए लिखते हैं
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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