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________________ परिशिष्ट २२९ ऐसे पुरुष महन्त बुद्धिका धारक ईकाल विषै होना दुर्लभ है ताते यासू मिलें सर्व सन्देह दूरि होय है। घणी लिखवा करि कहा आपणां हेतका वांछीक पुरुष शीघ्र आप यांसू मिलाप करो" । पण्डितजी जैसे महान् विद्वान थे, वैसे स्वभावके बड़े नम्र थे । अहकार उन्हें छू तक नही गया था । इन्हें एक दार्शनिकका मस्तिष्क, दयालु का हृदय, साधुका जीवन और सैनिककी दृढ़ता मिली थी । इनकी वाणीमें इतना आकर्षण था कि नित्य सहस्रों व्यक्ति इनका शास्त्रप्रवचन सुननेके लिए एकत्रित होते थे । गृहस्थ होकर भी गृहस्थीमे अनुरक्त नही रहे । अपनी साधारण भाजीविका कर लेनेके बाद आप शास्त्रचिन्तनमें रत रहते थे । इनकी प्रतिभा विलक्षण थी, इसका एक प्रमाण यही है कि आपने किसीसे बिना पढ़े ही कन्नड़ लिपिका अभ्यास कर लिया था । इनके जन्म संवत्मे विवाद है । पं० देवीदास गोधाने इनका जन्म सवत् १७९७ दिया है, पर विचार करने पर यह ठीक नही उतरता है । मृत्यु निश्चित रूपसे संवत् १८२४ मे हुई थी । इन्हें आततायियों का शिकार होना पडा था । इनकी विद्वत्ता, वक्तृता एव ज्ञानकी महत्ताकै कारण जयपुर राज्यके कतिपय ईर्ष्यालुओने इनके विरुद्ध षड्यन्त्र रचा था । फलतः राजाने सभी जैनोको कैद करवाया और पड्यन्त्रकारियो के निर्देशानुसार इनके कतल करनेका आदेश दिया । इस घटनाका निरूपण कवि बखतरामने अपने बुद्धिविलासमे निम्न प्रकार किया है तब ब्राह्मण मतो यह कियो, शिव उठान को टोना दियो । तामे सबै श्रावगी कैद, करिके दंड किए नृप फेंद 1 गुर तेरह पंथिनु कौ भुमी, टोडरमल नाम साहिमी । ताहि भूप मारयौ पलमाहि, गाढ्यो मद्धि गंदिगो ताहि ॥ पण्डितजीकी कुल ११ रचनाएँ हैं, इनमे सात टीकाग्रन्थ, एक स्वतन्त्रग्रन्थ, एक आध्यात्मिकपत्र, एक अर्थ सदृष्टि और एक भाषा पूजा ।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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