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________________ २२० हिन्दी-जैन साहित्य-परिशीलन विशेषता यह भी है कि इनमें काव्यके साथ प्रशस्तियोंमें इतिहास मी अकित किया गया है | आपने अपनी रचनाएं प्रायः ग्वालियर, दिल्ली और हिसारके आस-पासमे लिखी है। अतः उत्तर भारतकी जैन जनताका तत्कालीन इतिवृत्त इनमें पूर्णरूपसे विद्यमान है। हरिवंश पुराणकी आद्य प्रशस्तिमे वताया गया है कि उस समय सोनागिरिमं मधारक शुभचन्द्र पदारूढ़ हुए थे। इससे अनुमान किया जाता है कि ग्वालियर भट्टारकीय गद्दीका एक पट्ट सोनागिरिम भी था। 'सम्मइजिनचरिउकी प्रशस्तिम आठवे तीर्थकर चन्द्रप्रमकी विशाल मूर्तिके निर्माण किये जानेका उल्लेख है । पंक्तियाँ निम्न प्रकार है : तातम्मि रवणि वंभवय भार भारेण सिरि भयखालंक वंसम्मि सारेण । संसारवणु-भोय-णिविण चित्तण वर धम्म झाणामएणेष वित्तेण । खेल्हाहिहाणेण गर्मिऊण गुरुतेण नसकित्ति विणयच्च मंडिय गुणोहेण । भो मयण दाग्गि उल्हवण णणढाण संसारजलरासि उत्चार वर जाण । तुम्हह पसाएण भव दुह कयंतस्स ससिपह जिणेदस्स पडिमा विसुदस्स। काराविया महंजि गोपायले तुगं उडचावि णामेण तिथम्मि सुइ संग। यशोधरचरित और पुण्यासव कथाकोशकी प्रशस्तिमें भी अनेक ऐतिहासिक उल्लेख हैं । कविने अपनी रचनाओंमे तत्कालीन जैन समानका मानचित्र दिखलानेका आयास किया है। इनकी निम्न रचनाएँ प्रसिद्ध है: सम्यक्त्वजिनचरित, मेवेश्वरचरित, त्रिपष्टिमहापुराण, सिद्धचक्रविधि,
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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