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________________ परिशिष्ट २२१ बलभद्रचरित, सुदर्शनशीलकथा, धन्यकुमारचरित, हरिवापुराण, सुकोशलचरित, करकण्डुचरित, सिद्धान्ततर्कसार, उपदेशरत्नमाला, आत्मसम्बोधकाव्य, पुण्यासवकथा, सम्यक्त्वकौमुदी तथा पूजनोंकी जयमालाएँ । इन्होने इतना अधिक साहित्य रचा है, कि उसके प्रकाशनमात्रसे अपभ्रश साहित्यका भाण्डार भरा-पूरा दिखलायी पड़ेगा। रूपचन्दकवि रूपचन्दजी आगराके निवासी थे। ये महाकवि बनारसीदासके समकालीन है। यह रससिद्ध कवि है । इनकी रचनाएँ परमार्थ दोहा शतक, परमार्थ गीत, पदसग्रह, गीतपरमार्थी, पचमंगल एव नेमिनाथरासो उपलब्ध है | कविताका नमूना निम्न प्रकार है अपनो पद न विचारके, महो जगतके राय । भववन छामक हो रहे, शिवपुरसुधि विसराय ॥ भववन भरमत ही तुम्ह, वीतो काल अनादि । अव किन घरहिं संधारई, कत दुख देखत वादि । परम अतीन्द्रिय सुख सुनो, तुमहि गयो सुलझाय । किन्वित इन्द्रिय सुख लगे, विपयन रहे लुभाय । विपयन सेवते भये, तृष्णा ते न वुझाय । ज्यों जल खारा पीवते, वाढे तृपाधिकाय ॥ पाण्डे रूपचन्द-इन्होने सोनगिरिम जगन्नाथ श्रावकके अध्ययनके लिए कवि बनारसीदासके नाटक समयसारपर हिन्दीटीका सक्त् १७२१में लिखी है। अन्यकी मापा सुन्दर और प्रौढ है। इस ग्रन्थकी प्रशस्तिसे अवगत है कि यह अच्छे कवि थे । इनकी कविताका नमूना निम्न हैपृथ्वीपति विक्रमके रान मरजाद लीन्हें, सत्रह लै बीते परिनु आप रसमैं।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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