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परिशिष्ट
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तिह अतुलबल गुणवंत, श्रीग्याससुत जयपंत ।
समरत्य साहसधीर, श्रीपातसाह निसीर । संवेगसुन्दर उपाध्याय-इनके गुरुका नाम जयसुन्दर था तथा यह बड़तपगच्छके अनुयायी थे | इन्होने सवत् १५४८ मे 'साराविखावनरासा' नामक उपदेशात्मक ग्रन्थकी रचना की है। इस ग्रन्थमे आचारात्मक विषय निरूपित है।
महाकवि रहधू-इनके पितामहका नाम देवराय और पिताका नाम हरिसिंह तथा माताका नाम विजयश्री था । यह पद्मावती पुरवाल जातिके थे। ये गृहस्थ विद्वान् थे। कविकुल तिलक, सुकवि इत्यादि इनके विशेषण हैं। ये प्रतिष्ठाचार्य भी थे। इन्होने अपने जीवनकालमें अनेक मूर्तियोंकी प्रतिष्ठाएँ कराई थी। इनके दो भाई थे-बाहोल और माहणसिह । इनके दो गुरु थे-ब्रह्माश्रीपाल और भहारक यश कीर्ति। भट्टारकजीके आशीर्वादसे इनमे कवित्व शक्तिका स्फुरण हुआ था तथा ब्रहाश्रीपालसे विद्याध्ययन किया था। कविवर रहधू ग्वालियरके निवासी थे। इनके समकालीन राजा डूंगरसिह, कीर्तिसिंह, भट्टारक गुणकीर्ति, भधारक यशकीर्ति, भधारक मल्यकीर्ति और महारक गुणभद्र थे।
इनका समय १५ वी गतीका उत्तरार्द्ध और १६ वीं शतीका पूर्वार्ध है। इन्होने अपनी समस्त ग्चनाएँ ग्वालियरके तोमरवशी नरेश डेंगरसिह और उनके पुत्र कीर्तिसिंहके शासनकाल्में लिखी हैं। इन दोनों नरेशोंका शासनकाल वि० स० १४८१ से वि० स० १५३६ तक माना जाता है। कविने 'सम्यक्त्वगुणनिधान'का समातिकाल वि० स० १४९२ भाद्रपद शुक्ला पूर्णिमा मंगलवार दिया है। इस ग्रन्थको कविने तीन महीनोमें लिखा था। सुकौशलचरितका समाप्तिकाल वि० स० १४९६ माघ कृष्ण दशमी बताया गया है।
महाकवि रइधू अपभ्रश भाषाके रससिद्ध कवि है। आपकी रचनाओमे कविताके सभी सिद्धान्त सनिहित हैं। आपकी कृतियों की एक