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हिन्दी - जैन साहित्य- परिशीलन
ज्येष्ठ शुक्लाष्टमी सोमवारको ध्वजा, पताका, तोरण, बन्दन मालादिसे अलकृत आदीश्वर जिनालय मे नान्दिस्थापन विधि सहित श्री सरस्वतीकण्ठाभरण तरुण प्रभाचार्यने खरतरगच्छीय जिनकुशल सूरिके पदपर इन्हे प्रतिष्ठित किया था । शाह हरिपालने सघभक्ति और गुरुभक्तिके साथ इन्हे युगप्रधानपद बड़े उत्सवके साथ प्रदान किया था । इन्हीं आचार्यने थूलिभद्रफागु चैत्रमहीनेमे फाग खेलने के लिए रचा है । कविताका नमूना निम्न प्रकार है
उह सोहग सुन्दर रूपवंतु गुणमणि भंडारो | कंचण जिस झलकंत कंति संजम सिरिहारो ॥ धूलिभद्र मुणिराउ जाम महियली बोहंतर | नयरराय पाडलियाँ हि पहूतर विहरंतर ॥
विजयभद्र --- इनका अपर नाम उदयवन्त भी मिलता है । इन्होंने संवत् १४१२ मे गौतमरास नामक ग्रन्थ रचा है । कविताका नमूना निम्न प्रकार है-
जंबूदीवि सिरमरइखित्ति खोणीतलमंडणू । मगधदेस सेविय नरेस रिङ-दल-बल खंडणु ॥ धणवर गुब्वर नाम गासु जहिं गुणगण सज्जा । पिप्पु बसे वसुभूह तस्थ जसु पुहवी भज्जा !
ईश्वरसूरि - ईश्वरसूरिकै गुरुका नाम शान्तिसूरि था । इन्होंने माडलगढ़ के बादशाह गयासुद्दीनके पुत्र नासिरुद्दीन के समय - वि० स० १५५५ - १५६९ मे पुंज मन्त्रीकी प्रार्थनासे स० १५६१ में ललितागचरित्रकी रचना की है । इनकी भाषा प्राकृत और अपभ्रा मिश्रित है । कविताका नमूना निम्न है
महिमहति मालवदेस, धण कणयलच्छि निवेस । तिहँ नयर मँडवदुग्ग, महिनवर जाण कि सम्ग ॥