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रहस्यवाद
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पिय भोगी मै भुक्ति विशेप, पिय जोगी मै मुद्रा भैप ॥ जह पिय तहँ मैं पियके संग, ज्यों शशि हरि मै ज्योति अभंग ।
इसके अनन्तर कविने शुद्धात्म तत्त्वकी प्राप्तिके लिए अनेक भावामक दशाओका विश्लेषण किया है । इस सरस रहस्यवादमे प्रेमकी सयोग वियोगात्मक दशाओका विश्लेषण भी सूक्ष्मतासे किया गया है।