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ग्यारहवाँ अध्याय
सिंहावलोकन हिन्दी-जैन-साहित्यका आरम्भ ७वी शतीसे हुआ है। अपभ्रश भापा और पुरानी हिन्दीमें सबसे प्राचीन रचनाएँ जैन-कवियोंकी ही उपलब्ध हैं । इन दोनों भापाओमे विपुल परिमाणमें ग्रन्थोका प्रणयन कर हिन्दीसाहित्यके लिए उपजाऊ क्षेत्र तैयार करना जैन-लेखकोंका ही कार्य है। भले ही सकीर्णता और साम्प्रदायिक मोहमे आकर इतिहास निर्माता इस नम सत्यको स्वीकार न करें । साहित्यका अनुशीलन पूर्वोक्त प्रकरणोंमें किया जा चुका है, अतः यहॉपर समयक्रमानुसार कवियोकी नामावली दी जा रही है। ___ आठवीं शताब्दीमे स्वयंभूदेवने हरिवंशपुराण, पउमचरिउ (रामायण) और स्वयम्भू छन्द; दशधी शताब्दीमे देवसेनने सावयधम्म दोहा पुष्पदन्तने महापुराण, यशोधर चरित और नागकुमार चरित ; योगीन्द्रदेवने परमात्मप्रकाश दोहा और योगसार दोहा ; रामसिंह मुनिने दोहापाहुड एवं धनपाल कविने भविसयत्तकहा लिखी है । ग्यारहवीं शताब्दीमें कनकामर मुनिने करकण्डु चरित ; जिनदत्तसूरिने चाचरि, उपदेश रसायन
और कालस्वरूप कुलक रचे हैं। बारहवीं शताब्दीमे हेमचन्द्रसूरिने प्राकृत व्याकरण, छन्दोनुशासन, और देशीनाममाला आदि; हरिमनसूरिने नेमिनाथ चरित; शालिभद्र सूरिने बाहुबलिरास; सोमप्रभने कुमारपाल प्रतिबोध, जिनपद्म सूरिने स्थूलभद्र फाग और विनयचन्द्र सूरिने नेमिनाथ चतुष्पदिकाकी रचना की है।
१३ वीं शताब्दीमें रासा अन्य और कथात्मक चउपई ग्रन्थ रचे