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प्रतीक-योजना
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चरखा चलता नाही, चरखा हुमा पुराना । पग खूटे द्वय हालन लागे, उर मदिरा खखराना ॥ छीदी हुई पॉखडी पसली, फिरै नही मनमाना। चरखा चलता नाही, चरखा हुआ पुराना ॥ रसना तकलीने वल खाया, सो अब कैसे खूटे। सबद सूत सूधा नहीं निकले, घड़ी घडी फल टूटै ॥ आयु मालका नही भरोसा, अंग चलाचल सारे। रोज इलाज मरम्मत चाहै, वैद वादई हारे । नया चरखला रंगा-चंगा, सवका चित्त धुराचे। पलटा वरन गये गुन अगले, अब देखें नहिं भावै ॥ मोटा महीं कातकर भाई, कर अपना सुरमेरा।
अंत भागमे इंधन होगा, भूधर समझ सवेरा ॥ गुण या सुख बोधक प्रतीकोमे मधु,फूल, पुष्प, किसलय, मोती, अपा, अमृत, प्रभाव, दीप और प्रकाश प्रमुख हैं। इन प्रतीको द्वारा सुख और आत्मिक गुणोंकी अनेक तरहसे सुन्दर अभिव्यञ्जना की गयी है।
मधु ऐन्द्रियक सुखकी भावनाको अभिव्यक्त करता है। ऐन्द्रियक सुख क्षणविध्वंसी है। जब जीवन उपवनमे वसन्त आता है, उस समय जीवनका प्रत्येक कण सौन्दर्यसे लात हो जाता है। उसकी जीवन डालीपर कोकिल कुहू कुहू करने लगती है। मल्यानिलके स्पर्शसे शरीरमे रोमाञ्च हो जाता है, हृदयमे नवीन अभिलापाएँ जागृत होती हैं । ऐन्द्रियक सुख इस प्राणीको आरम्भमे आनन्दप्रद मालूम पडते है, परन्तु पीछे दुख मिश्रित दिखलायी पडने लगते है। मधु प्रतीक-द्वारा कवि बुधजनने सामरिक विषयेच्छाका सुन्दर विश्लेषण किया है । इस सुखेच्छाकी भावानुभूतिके लिए ही कविने मधु प्रतीकका आयोजन किया है।
फूल हर्प और आनन्दका प्रतीक है। वासन्ती समीर मनमे राशिराशि अभिलाषाओको जागृत करता है । हृदयमे स्मृतियाँ, ऑखोमै मधुर