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हिन्दी - जैन- साहित्य-परिशीलन
सीप' कामिनी के मोहक रूपके प्रति आसक्तिका प्रतीक है। सीप जैसे जलसे उत्पन्न होती है, और जल्म ही संवर्द्धनको प्राप्त होती है । इसी प्रकार आसक्ति वासना जन्य अनुरक्तिसे उत्पन्न होती है और उसीमें वृद्धिंगत भी। सीपकी रूपाकृति एक विलक्षण प्रकारकी होती है, उसी प्रकार आसक्ति भी चित्र-विचित्रमय होती है |
खैर' द्रव्यकमोंका प्रतीक है । द्रव्यकमका सम्वन्ध कैसे होता है ? इनके संयोगसे आत्मा किस प्रकार रक्त विकृत हो जाती है और कमोंके कितने भेद किस प्रकारसे विपच्यमान होते हैं; आदि अनेक अन्तस्की भावनाओं की अभिव्यञ्जना इस प्रतीकके द्वारा की गयी है ।
पंचन' विपयका प्रतीक है। पचेन्द्रियोंके द्वारा विपय सेवन किया जाता है तथा इसी विपयासक्ति के कारण आत्मा अपने स्वभावसे च्युत है । विमाव परिणतिकी अभिव्यञ्जना भी इस प्रतीक द्वारा कवि मनरंगलाल और लालचन्दने की है।
तुप शक्तिका प्रतीक है। यह वह शक्ति है जो आत्मकल्याणसे जीवनको पृथक करती है, और विषयोंके प्रति आसक्ति उत्पन्न करती है ।
लहर तृष्णा या इच्छाका प्रतीक हैं; कवि बनारसीदासने नदीके प्रवाहके प्रतीक द्वारा आत्म- संयोग सहित कर्मकी विभिन्न दशाओंका अच्छा विलेपण किया है
जैसे महीमण्डलमै नदीको प्रवाह एक,
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ताही अनेक भाँति नीरकी ठरनि है । पाथरके जोर तहाँ धारकी मरोर होत,
काँकरकी खानि वहाँ झागको झरनि हैं || पौनकी झकोर वहाँ चंचल तरंग उठे,
भूमिकी निचानि तहाँ भौरकी परनि है ।
१. दोहा पाहुड दो० १५१ । २. दोहा पाहुड दो० १५० १ ३. दोहा पाहुड दो० ४५ । ४. दोहा पाहुड दो० १५ ।
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