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१८६ हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन नान्तर उपस्थित करना और प्रकृतिरूप व्यापारोको आलम्बनके रूपमें अभिव्यक्त करना आपकी प्रमुख विशेषता है। उपमानके रूपमे प्रकृति चित्रण देखिये
धूमनके धौरहर, देख कहा गर्व करे, ये तो छिन माहि जाहि पौन परसत ही। सन्ध्याके समान रंग देखते ही होय भंग, दीपक पतंग जैसे काल गरसत ही। सुपनेमे भूप जैसे इन्द्रधनु रूप जैसे, मोस बूंद धूप जैसे पुरै दरसत ही। ऐसोई भरम सब कर्मनाल वर्गणाको,
तामैं गूढ मगन होय मरै तरसत ही ॥ इन्होने प्रकृतिको स्थितियोके प्रसारमें समवायरूपसे आलम्बन मानकर कतिपय रेखाचित्र उपस्थित किये हैं। वर्षा और ग्रीष्म ऋतुका अपनी अभीष्ट मानसिक स्थितिको स्पष्ट करनेके लिए दृष्टान्तके रूपमे इन ऋतुओं का वर्णन किया है
प्रीपममें धूप परै, तामे भूमि भारी जरे, फूलत है आक पुनि अतिहि उमहि के। वर्षाऋतु मेष भरै तामें वृक्ष केई फरै,
जरत जवास अध मापुहि ते हि कै॥ यद्यपि उपर्युक्त पक्तियोंमे प्रकृतिका स्वच्छ और चमत्कारिक वर्णन नही है फिर भी भावको सबल बनानेमें प्रकृतिको सहायक अकित किया है। कवि भूधरदासने रूपक बॉधकर जीवनकी मार्मिकताको प्रकृतिके आलम्बन द्वारा कितने अनूठे ढगसे व्यक्त किया है
रात दिवस घट माल सुभाव । भरि-भरि नल जीवनकी जल ॥