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हिन्दी - जैन- साहित्य - परिशीलन
मिथ्यात्वकी भावाभिव्यक्तिके लिए कवि बनारसीदासने तीन उपमानका प्रयोग किया है— मतग, तिमिर और निशा । इन तीनों उपमानों के द्वारा कविने मिथ्यात्व के प्रभावका निरूपण करनेमे अपूर्व सफलता प्राप्त की है । मिथ्यात्वको मदोन्मत्त हाथी इसलिए बताया गया है कि विवेकशून्य हो जानेपर व्यक्तिकी अवस्था मत्त हाथीसे कम नही होती । उसमें स्वेच्छाचारिता, अनियन्त्रित ऐन्द्रियक विषयका सेवन एवं आत्मज्ञानाभाव हो जाता है । इसी प्रकार अन्धकारके धनीभूत हो जानेसे पढार्थीका दर्शन नहीं हो पाता है, पासमें रखी हुई वस्तु भी दिखलायी नहीं पड़ती हैं, और किसी अभीष्ट स्थानकी ओर गमन करना असम्भव हो जाता है । कविने उपमानके इन गुणों द्वारा उपमेय मिध्यात्वकी विभिन्न विशेषताओंका विलेपण किया है । वस्तुतः उक्त उपमान प्रस्तुत के स्वारस्यका सुन्दर विलेपण करते है ।
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सम्यक्त्वकी विशेषता और विलेपणके लिए कवि भैया भगवतीदास, नूघरदास और धानतरायने चार उपमानोंका प्रयोग किया है— सिंह, सूर्य, प्रदीप और चिन्तामणि रत्न | जिस प्रकार सिहके दनमें प्रवेश करते ही इतर जन्तु भयभीत हो जाते हैं और वे सिहकी अधीनता स्वीकार कर लेते हैं उसी प्रकार सम्यक्त्व आत्मविश्वास गुण के आविर्भूत होते ही व्यक्तिकी सभी कमजोरियों समाप्त हो जाती है । मिध्यात्व - अनात्मा विपयक श्रद्धान रूपी मदोन्मत्त हाथी सम्यक्त्वरूपी सिंहको देखते ही पलायमान हो जाता है । विपयकांक्षाएँ और राग द्वेपाभिनिवेश सम्यक्त्वके पहले तक ही रहते हैं, आत्म श्रद्धानके उत्पन्न होनेपर व्यक्तिकी समस्त त्रियाएँ आत्म-कल्याण के लिए ही होने लगती है। अतएव सम्यक्त्वके प्रभाव, प्रताप, सामर्थ्य और अन्य दिव्य विशेषताओंको दिखलाने के लिए सिंह उपमानका व्यवहार किया है। इसी प्रकार अवशेष उपमान भी सम्यक्त्वको विशेषताका पूरा चित्र सामने प्रस्तुत करते हैं ।
पञ्चेन्द्रियकै विपयोंकी सारहीनता कानीकौड़ी, नलमन्थन कर, घृत