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________________ પંઢ हिन्दी - जैन- साहित्य- परिशीलन आतमको अहित अध्यातम रहित रसो, आसव महातम अखण्ड अण्डवत है। ताको विसतार गिलिवेको परगट भयो, arish विकासी ब्रह्म मंडवत है ॥ जामै सब रूप जो सबमें सब रूप सोयें, सवनिसों अलिप्त अकाश खंडवत है । सोहे ज्ञानभानु शुद्ध संवरको भेप घरे, arat रुचिरेखक हमारे दण्डवत है ॥ समदृष्टिकी प्रशसा करते हुए कवि बनारसीदासने उपमालकारकी अद्भुत छटा दिखलायी है । कवि कहता है - • भेद विज्ञान जग्यो जिनके घट शीतल चित्र भयो जिमि चन्दन | केलि करें शिव मारगमें जगमाँहि जिनेश्वर के लघुनन्दन ॥ इस पद्यमें कविने चित्तकी उपमा चन्दनसे दी है । जिस प्रकार चन्दन शीतल होता है, आतापको दूर करता है, उसी प्रकार भेदविज्ञानी हृदय भी । अतएव यहाँ चाँदनी उपमान और हृदय उपमेय है । समान धर्म शीतलता है तथा उपमानवाची शब्द जिमि है । कवि कहता है कि जिनके मनमन्दिर में आत्मविज्ञानका प्रकाश उत्पन्न हो गया, उनका हृदय चन्दन के समान शीतल हो जाता है । कवि मनरंगलालने निम्न पद्योमे उपमालंकारकी रसोत्कर्ष करनेमें कितनी विलक्षणता प्रदर्शित की है। चिन्तनमें कितना सतुलन है, यह उदाहरणोंसे स्पष्ट है । योजना- द्वारा भावना और गिरिसम बेंच गयन्द सुमनको खरपर चित्त चलावे । पाय धरम लब्धि त्यागि शट विषय-भोगको ध्यावे ॥ मुसिक्याय कही अब जावो । जन्मान्तर लौ अव खावो ॥ ले हार भने मुसिक्याना । जिमि पावत भूखो दाना ॥
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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