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हिन्दी - जैन-साहित्य में अलंकार- योजना
कवि वृन्दावनदासने भगवद्भक्तिकी विशेषता बतलाते हुए उपमालकारकी कितनी सुन्दर योजना की है । यद्यपि यह पूर्णोपमा है, पर इसमें आत्म-भावनाको अभिव्यक्त करने के लिए कविने "सुन्दर नारी की नाक कटी है” को उपमान बनाकर "जिनचन्द पदाम्बुन प्रीति विना" जीवनको उपमेय मानकर भावोको मूर्तिक रूप प्रदान करनेवा आयास किया है । सव ही विधिसो गुणवान वडे, वलबुद्धि विभा नही टेक हटी है । जिमचन्द पदाम्बुज प्रीति विना, जिमि सुन्दर नारीकी नाक कटी है ॥
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जैन कवियोने अप्रस्तुत - द्वारा प्रस्तुतके भावकी सुन्दर अभिव्यजना करनेका पूरा यत्न किया है। प्रतीको द्वारा, साम्य रूपमे, मूर्त्तके लिए अमूर्त रूपमें आधार के लिए आधेय रूपमे और मानवीकरण के रूप मे उपमाकारकी योजना की गई है। कई कवियोने निर्जीव वस्तुओं के वर्णनमें या सूक्ष्म भावोकी गम्भीर अभिव्यजना मे ऐसे उपमानोंका भी प्रयोग किया है, जिनसे मानव के सम्बन्धमें अभिव्यक्ति की गई है । साहित्यिक दृष्टिसे ये पद्य और भी महत्त्व रखते है ।
सौन्दर्य और चित्रण के लिए भी जैन काव्योमे उपमा और उत्प्रेक्षाका अधिक व्यवहार किया है । इन अलंकारोके सहारे इन्होंने अपनी कल्पनाका विस्तार बहुत दूरतक वढाया है । कवि -समय-सिद्ध उपमानोंके अलावा नूतन उपमानोका भी प्रयोग किया गया है। प्रसिद्ध उपमानोंके व्यवहारमें भी अपनी कलाका पूरा परिचय ये कवि दे सके है । चन्द्रप्रभ पुराणमे नेत्रोकी उपमा कमलसे दी गयी है । कमलके तीन वर्ण प्रसिद्ध हैं - लाल, नीला, और श्वेत । बचपन मे नेत्र नीले वर्णके होते है अतएव उस समयके नेत्रोंकी उपमा नील कमलसे तथा युवावस्था में नेत्र अरुण वर्ण होनेसे "कजारुण लोचन" कहकर वर्णन किया गया है । वृद्धावस्थामे नेत्रका रंग कुछ श्वेत हो जाता है अतः "कंजश्वेत इब राजत" कहकर निरूपण किया है।