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छन्द-विधान
सब जीव द्रव्यनय एकसे, केवलज्ञान स्वरूपमय । तस ध्यान करहु हो भव्यजन, जो पावहु पदधी अखय ॥
कवि भूधरदासके काव्य ग्रन्थोमे छन्दवैचित्र्यका उपयोग सर्वत्र मिलेगा। इन्होने सभी सुन्दर छन्दोंका प्रयोग रसानुकूल किया है। वैराग्यका निरूपण करनेके लिए नरेन्द्र छन्दको चुना है, इसमे अन्तके गुरुवर्णपर जोर देनेसे सारी पक्ति तरगित हो जाती है। संसारके कुत्सित और घृणित स्वार्थ सामने नग्न नृत्य करते हुए उपस्थित हो जाते हैं।
इहि विधि रान रै नरनायक, भोगै पुन विशाला। सुखसागर में रमन निरंतर, जात न जानै काला । एक दिना शुभकर्म संजोगे, क्षेमकर मुनि बन्दे । देखि श्रीगुरु के पद पंकन, लोचन अलि आनन्दे ।।
किसही घर कलहारी नारी, के बैरी सम भाई।
किसही के दुख बाहर दीखे, किसही उर दुचिताई ॥ व्योमवती छन्दका प्रयोग तो कवि भूधरदासने बहुत ही उत्तम ढगसे किया है। अमूर्त भावनाएँ मूर्तिमान होकर सामने प्रस्तुत हो जाती हैं। संगीतकी ल्यने रस वर्षा करनेमें और भी अधिक सहायता की है
भूखप्यास पोरै र अंतर, प्रजलै आंत देह सब दागे। अग्निसरूप धूप ग्रीषम की, ताती बाल झालसी लागे । तपै पहार ताप तन उपजै, कोपै पित दाह ज्वर जागै। इत्यादिक ग्रीपमकी बाधा, सहत्त साधु धीरज नहीं त्यागै॥
x जे प्रधान केहरि को पकरें, पनग पकर पावसों पापै । जिनकी जनक देख भौं बाँकी, कोटक सूरदीनवा नापै ॥