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१५. हिन्दी-जैन साहित्य परिशीलन कुछ कहती-सी जान पड़ती है। नाविशेष सौन्दर्यके साथ माधुर्य मी अगाहित करनेमें सक्षम है
केवलरूप विरासत चतन, ताहि विलोकि अर मतवार । काल अनादि वितरीत भयो, भावह तोहि चेतन होत कहारे ॥ भूलि गयो गतिको फिरलो, अव ती दिन च्यारि भये गरे । लागि कहा रह्यो अनिके संग, चेतत क्यों नहिं चतनहारे ।
इस पद्य 'दिन यारि भये अहरारे का ध्वन्यर्थ काव्य-रसिक लिए कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। अतः संक्षेपमें वहीं कहा जा सकता है कि इनकी माणमें वोगालिका शक्तिकी अन्या रागामिका निर्वा प्रवक्ता है; पर इनका राग सांसारिक नहीं, आत्मिक अनुरक्ति है।
कवि भूघरदासने नापाको सनाने, सवाल और चम्कीला बनाने अपनी पूर्ण पटुता प्रदर्शित की है। इनकी मात्रा मारणाने साय मनोरंजकता मी है। इनके नान्यमें कहीं प्रसाद माधुर्य है तो कई ओन माधुर्व ।
मावाको तीतर बनाने लिए नाटकीय माणशैलीश प्रयोग भी अवि वरदाउने लिग है। आत्मानुभूतिको अभिवन्दना इन शैलीमें किस प्रकार की जा सकती है, यह निम्न पडले सर है--
जोई दिन साई आयुमें अवसि घद, वृद्ध वृद्ध बीत अं अन्जुला बल है। देह नित लीन होत नन तेन हान होत, खांबन मलीन होत छीन हात बल है। आर्य नरा नेरी तक अन्तक अहेरी आय, परमी नीक जान नरमी विकल है । मिलकै निलापी बन पूछन ल मेरी, ऐसी दशा माही मित्र काहे की साल है।