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हिन्दी - जैन- साहित्य-परिशीलन
अभिव्यक्ति के साथ भापासे कितनी भावप्रवणता है । प्रेपणीयतत्त्वकी पर कविको कितनी है, यह सहजम ही जाना जा सकता है।
ढह-सुहेण । सावलेट |
तो गहिय चन्दन्हासा उहेण । हक्कारित लक्खणु लड्डु पहरूपहरू किं करहि खेठ । तुहु एक्के चक्के महु पद्द पुणु आर्य कवणु गण्णु । किं सीह (हि) होइ सहाउ अण्णु । तं विसुर्णेवि बिफ्फुरियाहरेण । मेल्लिट रहनु लच्छीहरेण ।
-स्वयम्भू रामायण ७५/२२
श्रीराहुलनीने इसका हिन्दीमें अनुवाद यो किया है-
तो गहिय चन्द्रहासायुधेहिं । इक्कारेट लक्ष्मण दशमुखेहिं । ले ग्रहरु प्रहरुका करहि क्षेप । तुह एको धक्को सावलेप | ममतें पुनि आहि कवन गण्य | का सिंहह होइ स्वभाव अन्य। सो सुनिया विस्फुरिता धरेहिं मेखंडे यांग लक्ष्मीधरेहिं ॥
भाषाको शक्तिशाली बनानेके लिए कवि पुष्पदन्तने समासान्त पका प्रयोग अत्यधिक किया है। निम्न उदाहरण दर्शनीय है
चिप-कालिंटि-काल-पात्र -जलहर-पिहिय-महंतरालओ । 'धुम-गय-नाण्ड-मण्डलुड ढाविय-चल-मचारि मेलभो । अविरल-सुसल-खरिस-चिरधारा-चारिस भरंव-भूमलो । हय-नवियर-पयाव- पसरुग्गय करू वण-गील-हलो ||
- मादिपुराण (२९-३०)
इसकी हिन्दी छायावि-कालिंदी-काल- नवजलधरछादित नभंतरालमा । घुतानगंढ-मंडल डड्डाविय चल-सत्ता-लिमेलमा । अविरल - मुसल - सद्दश थिर धारा वर्ष भरत-भूतला ।
हृत-रविकर प्रताप श्रसर उद्गत तक नील शाहला ॥