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आत्मकथा, जीवनचरित्र और संस्मरण
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-सेठी, बैरिस्टर चम्पतराय, बाबू ज्योतिप्रसाद, बाबू सुमेरचन्द एडवोकेट, बाबू अजितप्रसाद वकील, बाबू सूरजमल और महात्मा भगवानदीन ।
इस स्तम्भके लेखक श्री नाथूराम प्रेमी, श्री कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, श्री महात्मा भगवानदीन, श्री माईदयाल, श्री गुलाबराय एम. ए, श्री अजितप्रसाद एम. ए., श्री बनवारीलाल स्याद्वादी, श्री कामताप्रसाद जैन, श्री कौशलप्रसाद जैन, श्री दौलतराम मित्र, श्री जैनेन्द्रकुमार और श्री गोयलीय हैं । प्रयागमे जैसे त्रिवेणीके सगमस्थल - पर गंगा, यमुना और सरस्वतीकी धाराएँ पृथक्-पृथक् होती हुई भी एक है, ठीक उसी प्रकार यहाँ भी सभी लेखकोकी मिन्न-भिन्न शैलीका आस्वादन भिन्न-भिन्न रूपसे होनेपर भी प्रवाह - ऐक्य है । इस स्तम्भके सस्मरणों को पढ़नेसे मुझे ऐसा मालूम पड़ा, जैसे कोई भगवान्का भक्त किसी ठाकुर द्वारीपर खड़ा हो पञ्चामृतका रसास्वादन कर रहा हो । चतुर्थ भाग श्रद्धा और समृद्धिके ज्योति रत्नोसे जगमगा रहा है । वे रत्न हैं-राजा हरसुखराय, सेठ सुगनचन्द, राजा लक्ष्मणदास, सेठ माणिकचन्द, महिलारत मगनबाई, सेठ देवकुमार, सेट जम्बूप्रसाद, सेठ मथुरादास, सर मोतीसागर, रा०व० जुगमन्दिरदास, रा० ब० सुल्तानसिह और सर सेठ हुकुमचन्द |
इस स्तम्भके लेखक नाथूराम प्रेमी, पं० हरनाथ द्विवेदी, श्री कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, श्री तन्मय बुखारिया, श्रीमती कुन्थुकुमारी जैन बी० ए० (ऑनर्स), श्री हीरालाल काशलीवाल और श्री गोयलीय है । सचमुच मे यह सकलन बीसवीं शताब्दी के जैन समाजका जीताजागता एक चित्र है । समस्त पुस्तककै सस्मरण रोचक, प्रभावक और शिक्षाप्रद है । इस संग्रहके संस्मरणोंको पढ़ते समय अनेक तीर्थों में स्नान करनेका अवसर प्राप्त होगा । कही राजगृहके गर्मजलके झरनोमें अवगाहन करना पडेगा, तो कही वहाँके समशीतोष्ण ब्रह्मकुण्डके जलमे, तो कहीं पास ही के सुशीतल जलके झरनेमे निमजन करना होगा। आपको