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हिन्दी -जैन साहित्य - परिशीलन
सभी अपने दिव्य आलोकसे जीवन- तिमिरको विच्छिन्न करनेमें सक्षम है। प्रत्येक महान् व्यक्तिका अन्तरंग और बहिरंग व्यक्तित्व जीवनको प्रेरणा और स्फूर्ति देता है।
समस्त प्रमुख व्यक्तियोंको चार भागो में विभक्त किया है। प्रथम भाग त्याग और साधनाके दिव्य प्रदीपोकी अमरज्योति से आलोकित है । ये दिव्य दीप है ० शीतलप्रसाद, बाबा भागीरथ वर्णी, आत्मार्थी कानजी महाराज, व्र० प० चन्द्रावाई और भूआ ( चैरिस्टर चम्पतरायजीकी बहन ) ।
इन दिव्य दीपम तैल और वत्तिका सजोनेवाले श्री गोयलीयके अतिरिक्त अन्य लेखक भी है। इन सबकी शैली में अपूर्व प्रवाह, माधुर्य और जोश है। भाषामे इतनी धारावाहिकता है कि पाठक पढ़ना आरम्भ करनेपर अन्त किये बिना नही रह सकता ।
दूसरा भाग तत्त्वज्ञान के आलोक-स्तम्भोसे शोभित है । ये आलोक स्तम्भ है- गुरु गोपालदास वरैया, पं० उमरावसिह, प० पन्नालाल चाकलीवाल, पं० ऋप्रमदास, पं० महावीरप्रसाद, प० अरदास, पं० जुगलकिशोर मुख्तार और पं० नाथूराम प्रेमी ।
इस स्तम्भके लेखक्रोमे श्री गोयलीयके अतिरिक्त श्री क्षुल्लक गणेशप्रसाद वर्णी, श्री जैनेन्द्रकुमार, श्री प० कैलाशचन्द्र शास्त्री, श्री पं० सुखलालनी संघवी, श्री पं० नाथूराम 'प्रेमी' और श्री कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर आदि प्रमुख है। इन सभी संस्मरणोंम रोचकता इतनी अधिक है कि गूगेके गुड़कें स्वाढकी तरह उसकी अनुभूति पाठक ही कर सकेगे । भाषामें ओन, मावुर्य और प्रवाह है। शैली अत्यन्त संवत और प्रौढ है।
तीसरे भागमे वे अमर समान - सेवक हैं, जिन्होंने समाजमं नवचेतनाका प्रकाश फैलाया है। ये है-वायू सूरजभानु वकील, बाबू दयाचन्द गोवलीय, कुमार देवेन्द्रप्रसाद, वैरिस्टर लुगमन्दिरलाल जैनी, अर्जुनलाल