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आत्मकथा, जीवनचरित्र और संस्मरण प्रास करनेपर भी वह अपनेको अज्ञात ही रखना अधिक पसन्द करता है, यही उसकी सबनताकी सबसे बड़ी पहिचान है।
इस आत्मकथामें सामाजिक कुरीतियोका पूरा विवरण मिलता है । भाषा संयत, सरल और परिमार्जित है अग्रेजी और उर्दूक प्रचलित शब्दोको भी यथास्थान रखा गया है।
जीवनचरित्रोंमें सेठ माणिकचन्द, सेठ हुकमचन्द, कुमार देवेन्द्रप्रसाद, श्री बा० ज्योतिप्रसाद, ७० शीतलप्रसाद, ७० प० चन्दाबाई, श्री मगनबाई एवं श्वेताम्बर अनेक यति-मुनियोके जीवन चरित्र प्रधान हैं। इन चरित्रों से कई एक तो निश्चय ही साहित्यकी दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण हैं। पाठक इन जीवन-चरित्रोसे अनेक बाते ग्रहण कर सकते हैं।
इस श्रेष्ठ और रोचक पुस्तकके सम्पादक श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीय हैं। आपने इसमे जैन समाजके प्रमुख सेवक ३७ व्यक्तियोके संस्मरण सकनैन जागरणके
हित किये है। अधिकाश सस्मरणोके लेखक भी आप
' ही हैं । यह मानी हुई बात है कि महान् व्यक्तियोके अग्रदूत'
' पुण्य संस्मरण जीवनकी सूनी और नीरस घड़ियोंमे मधु घोलकर उन्हे सरस बना देते हैं। मानव-हृदय, जो सतत वीणाके समान मधुर भावनाओकी झंकारसे झकृत होता रहता है, पुण्य स्मरणोसे पूत हो जाता है। उसकी अमर्यादित अभिलाषाएँ नियन्त्रित होकर जीवनको तीव्रताके साथ आगे बढ़ाती हैं । फ्लतः महान् व्यक्तियों के सस्मरण जीवन की धाराको गम्भीर गर्जन करते हुए सागरमे विलीन नहीं कराते, बल्कि हरे-भरे कगारोंकी शोभाका आनन्द लेते हुए उसे मधुमती भूमिकाका पर्श कराते हैं, जहाँ कोई भी व्यक्ति वितर्क बुद्धिका परित्यागकर रसमग्न हो जाता है और परप्रत्यक्षका अल्पकालिक अनुभव करने लगता है।
प्रस्तुत सकलनमे ऐसे ही अनुकरणीय व्यक्तियोके सस्मरण है। ये २, प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी।