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निबन्ध-साहित्य
आपके आचार- विषयपर भी अनेक निवन्ध प्रकाशित हुए है । लेखनशैली सरल है। अभिव्यञ्जना चमत्कारपूर्ण है। हॉ, भाषामे जहाँ-वहाँ, : प्रवाह- गैथिल्य है ।
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श्री पं० १० दलसुख मालवणियाके दार्शनिक निबन्धोने जैनहिन्दी साहित्यसमृद्धिशाली बनाया है । आपके जैनागम, आगम युगका अनेकान्तवाद, जैनदार्शनिक साहित्यका सिंहावलोकन आदि निवन्ध महत्त्वपूर्ण है । आपकी लेखनशैली गम्भीर है। विषयका स्पष्टीकरण सम्यक् रूपसे किया गया है । आलोचनात्मक दार्शनिक निबन्धोमे कुछ गम्भीरता पाई जाती है ।
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श्री पं० वंशीधरजी व्याकरणाचार्य लधप्रतिष्ठ दार्शनिक निवन्धकार है । आप सामाजिक समस्याओपर भी लिखते है । स्यादवाद, नय, • प्रमाण, कर्मसिद्धान्तपर आपके कई निबन्ध प्रकाशित हो चुके है। आपके वाक्य छोटे हो या बडे सभी सम्बद्ध व्याकरणके अनुसार और स्पष्ट होते हैं । दार्शनिक निवन्धोंकी भाषा गम्भीर और सयत है । सरलसे सरल 'वाक्यों गभीर विचारोंको रख सके है । उदार और उच्च-विचार होने के कारण सामाजिक निबन्धोंमें प्राचीन रूढ़ परम्पराओके प्रति अनास्थाकी भावना मिलती है ।
श्री पं० दरबारीलाल न्यायाचार्य भी दार्शनिक निबन्ध लिखते है । - न्यायदीपिकाकी प्रस्तावना और आप्तपरीक्षाकी प्रस्तावना के अतिरिक्त " अनेकान्तवाद, द्रव्यव्यवस्था और पदार्थव्यवस्थापर आपके कई निबन्ध
निकल चुके है। आपकी शैली मुख्तारी है, शब्दबाहुल्य, भावात्पता : आपके निवन्धोंमें है। हॉ, विषयका स्पष्टीकरण अवश्य पाया जाता है । शैलीमें प्रवाह गुणकी भी कमी है । यह प्रसन्नताका विषय है कि दरबारीलालजीकी शैली उत्तरोत्तर विकसित हो रही है । आपके आरम्भिक ? निबन्धो में भाषाचाहुल्य है पर वर्त्तमान निबन्धोकी भाषा व्यवस्थित और सयत है।