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हिन्दी - जैन- साहित्य-परिशीलन
श्री पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्रीका भी दार्शनिक निबन्धकारोंमें महत्त्वपूर्ण स्थान है । आपने द्रव्यसंग्रहकी विशेष वृत्ति लिखी है, जिसमे अनेक दार्शनिक पहलुओंपर प्रकाश डाला है । स्याद्वाद, तत्त्व, चन्धव्यवस्था, कर्मसिद्धान्त प्रभृति विषयोंपर आपके निबन्ध प्रकाशित हुए हैं। अन्वेषणात्मक और भौगोलिक निबन्ध भी आपने लिखे हैं । आपकी विपयविवेचनशैली तर्कपूर्ण है । यद्यपि कहीं-कहीं भाषामें पडिताऊपन है तो भी सरलता, स्पष्टता और मनोरंजकताकी कमी नहीं है ।
श्री पं० जगन्मोहनलालजी सिद्धान्तशास्त्रीके दार्शनिक और आचारात्मक निबन्ध अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । आपके अबतक लगभग ७०-८० निबन्ध प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी लेखनशैली सरल एव स्पष्ट है । एक अध्यापकके समान आप विपयको समझानेकी पूरी चेा करते हैं । भाषा परिमार्जित और संयत है । शुष्क विषयको भी रोचक ढगसे समझाना आपकी शैलीकी विशेषता है ।
साहित्यिक निबन्ध लिखने वालोंमे श्री प्रेमीजी, बाबू कामताप्रसादजी, श्री मूलचन्द वत्सल, पं० पन्नालाल वसंत, पं० साहित्यिक और परमानन्द शास्त्री, प्रो० राजकुमार एम० ए०, सामाजिक निर्बंध साहित्याचार्य, श्री जमनालाल साहित्यरत्न, श्री ऋपमदास रॉका, श्री भगरचन्द नाहटा, श्री पं० नाथूलाल साहित्यरल प्रभृति है ।
श्री प्रेमीजीने कवियोंकी जीवनियाँ शोधात्मक शैली में लिखी है। आपका "हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास" आजतक पथप्रदर्शक बना हुआ है। इसमे प्रायः सभी प्रमुख कवियोका जीवन-परिचय सकलित किया गया है। प्रेमीजीके ही पथपर श्री बाबू कामताप्रसादनी भी चले पर उनसे एक कदम आगे । आपने कुछ व्यवस्थित रूपसे दो चार नवीन उद्धरण देकर तथा कुछ नवीन युक्तियोंके साथ "हिन्दी चैन साहित्यका संक्षिप्त इतिहास" लिखा । "मनुष्य त्रुटियोका कोप है। अतः
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