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निबन्ध-साहित्य
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श्री पं० शीतलप्रसादजी इस शताब्दीके उन आदिम दार्शनिक निवन्धकारोमे हैं जो साहित्यके लिए पथप्रदर्शक कहलाते हैं। आपने अपनी अप्रतिम प्रतिभा द्वारा इतना अधिक लिखा है कि जिसके संकलनमात्रसे जनसाहित्यका पुस्तकालय स्थापित किया जा सकता है। श्री ब्रह्मचारीजी दृढ अध्यवसायी थे । यही कारण है कि आपकी शैलीमें अभ्यास
और अध्ययनका मेल है। ब्रह्मचारीजीने सीधी-सादी भाषामे अपने पुष्ट विचारोको अभिव्यक्त किया है। दर्शन और इतिहास दोनों ही विषयोपर दर्जनी पुस्तके एव सहस्रो निबन्ध आपके प्रकाशित हो चुके हैं। ऐसा कोई विषय नही जिसपर आपने न लिखा हो। बहुमुखी प्रतिमाका उपयोग साहित्य सृजनमें किया, पर तुयोग्य सहयोगी न मिलनेसे सुन्दर चीजें न निकल सकी। आपकी तुलना मैं राहुलजीसे करूँ तो अनुचित न होगा। राहुलजी के समान ब्रह्मचारीजी भी महीनेमे कमसे कम एक पुस्तक अवश्य लिख देते थे। यदि आपकी प्रतिमा आध्यात्मिक उपन्या की ओर मुड़ जाती तो निश्चय जैन साहित्य आज हिन्दी साहित्यमे अपना विशिष्ट स्थान रखता।
श्री पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री दार्शनिक, आचारात्मक और ऐतिहासिक निबन्ध लिखनेमें सिद्धहस्त हैं। आपकी न्यायकुमुदचन्द्रोदयकी प्रस्तावना जो कि दार्शनिक विकासक्रमका शन-माण्डार है, जैन साहित्यके लिए स्थायी निधि है । आपके स्याद्वाद और सप्तमगी', अनेकान्तवादकी व्यापकता और चारित्र', शब्दनयः, महावीर और उनकी विचारधारा, धर्म और राजनीति प्रभृति निबन्ध महत्वपूर्ण है । "जैनधर्म तो शिष्ट और सयत भाषामें लिखी गई अद्वितीय पुस्तक है।
१. जैनदर्शन वर्ष २ अंक ४-५ पृ० ४२। २. जैनदर्शन नवम्बर १९३४ । ३. वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ पृ०९। ४. श्री महावीर स्मृति अन्य पृ० १३ । ५. अनेकान्त वर्ष पृ०६००। ६. प्रकाशक दिगम्बर जैन संघ, मथुरा।