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हिन्दी - जैन-साहित्य-परिशीलन
ऐतिहासिक निबन्ध रचयिताओमे प्रो० खुशालचन्द्र गोरावाला एम० ए० साहित्याचार्यका भी अपना स्थान है। आपके निवन्धोम अन्वेषण एव पुष्ट ऐतिहासिक प्रमाण विद्यमान है । विप्रय- प्रतिपादनकी शैली प्रौढ एवं गम्भीर है। अबतक आपके सास्कृतिक और ऐतिहासिक अनेक निबन्ध प्रकाशित हो चुके है पर गोम्मटेशप्रतिष्ठापक' और कलिंगाधिपतिखारवेल' निबन्ध महत्त्वपूर्ण है । आपकी भाषा बड़ी ही परिमार्जित है । पुष्ट चिन्तन और अन्वेषणको सरल और स्पष्टरूपमें आपने अभिव्यक्त किया है । इतिहासके शुष्क तत्त्वोका स्पष्टीकरण स्वच्छ और बोधगम्य है ।
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सबसे अधिक निवन्ध आचार और दर्शनपर लिखे गये है । लगभग ३०, ३५ विद्वान् उपर्युक्त कोटिके निवन्ध लिखते हैं । इन निवन्धकी सख्या दो सहस्रके ऊपर है । यहाँ कुछ श्रेष्ठ निवन्धकारोंकी शैलीका परिचय दिया जायगा । यद्यपि उक्त विपयके सभी निवन्ध विचार-प्रधान है तो भी इनमें वर्णनात्मकता विद्यमान है ।
आचारात्मक और दार्शनिक निबन्ध
साहित्य
दार्शनिक शैलीके श्रेष्ठ निबन्धकार श्री प० सुखलालनी सघवी है। योगदर्शन और योगविशतिका, प्रमाणमीमासा, ज्ञानविन्दुकी प्रस्तावनासे दर्शन और इतिहास दोनो ही विवेचनोंमें आपकी तुलनात्मक विवेचन पद्वतिका पूरा आभास मिल जाता है । आपकी शैलीमे मननशीलता, स्पष्टता, तर्कपटुता और बहुश्रुताभिज्ञता विद्यमान है। दर्शनकै कठिन सिद्धान्तोको बढ़े ही सरल और रोचक ढगसे आप प्रतिपादित करते है ।
आपके सास्कृतिक निबन्धोका गद्य बहुत ही व्यवस्थित है । भाषामे प्रवाह है और अभिव्यजनामे चमत्कार पाया जाता है । थोडेमे बहुत प्रतिपादनकी क्षमता आपके गद्यमें है ।
१. जैन सिद्धान्त भास्कर भाग १३ किरण १ पृ० १ । २. जैन सिद्धान्त भास्कर भाग १६ किरण १ - २ |