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निवन्ध-साहित्य
राजपूतानेके जेनवीर, मौर्य साम्राज्य के जैनवीर, आर्यकालीन भारत आदि पुस्तकाकार संकलित महत्त्वपूर्ण रचनाएँ है । गोयलीयजीकी ये रचनाएँ नवयुवकोका पथ प्रदर्शन करनेके लिए उपादेय है ।
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इतिहास और पुरातत्त्वके वेत्ता श्री डा० हीरालाल जैन अन्वेषणात्मक और दार्शनिक निबन्ध लिखते है। कई ग्रन्थोकी भूमिकाऍ आपने लिखी हैं, जो इतिहासके निर्माण में विशिष्ट स्थान रखती है। जैन इतिहासकी पूर्वपीठिका तो शोधात्मक अपूर्व वस्तु है। इस छोटी-सी रचनामे गागरमे सागर भर देनेवाली कहावत चरितार्थ हुई है । आपकी रचनाशैली प्रौढ़ है। उसमे धारावाहिकता पाई जाती है। भाषा सुव्यवस्थित और परिमार्जित है। थोड़े शब्दोंम अधिक कहनेकी कलामे आप अधिक प्रवीण है । महाधवल, धवलसम्बन्धी आपके परिचयात्मक निबन्ध भी महत्वपूर्ण है । श्रवणबेलगोलके जैन शिलालेखांकी प्रस्तावनामे आपने अनेक राजाओ, रानियां, बतियां और श्रावकोके गवेपणात्मक परिचय लिखे है ।
मुनि श्री कान्तिसागरके पुरातत्त्वान्वेपणात्मक निबन्धोका विशिष्ट स्थान है। अबतक आपने अनेक स्थानोके पुरातत्त्वपर प्रकाश डाला है । प्राचीन मूर्तिकला और वास्तुकलाका मार्मिक विलेपण आपके निबन्धोमं विद्यमान है । प्राचीन जैन चित्रकलापर भी आपके कई निवन्ध "विशाल भारत" मे सन् १९४७ में प्रकाशित हुए है। प्रयाग सग्रहालयमे जैन पुरातत्त्व ' तथा विन्ध्यभूमिका जैनाश्रितशिल्प स्थापत्य निबन्ध बड़े महत्त्वपूर्ण है। गैली विशुद्ध साहित्यिक है । भाषा प्रौढ़ और परिमार्जित है। अभी हाल ही मे भारतीय ज्ञानपीठ काशीसे प्रकाशित खण्डहरोका वैभव, और खोजकी पगडियाँ इतिहास और पुरातत्त्वकी दृष्टिसे मुनिजी के निबन्धोका महत्त्वपूर्ण सकलन है ।
१. ज्ञानोदय सितम्बर १९४९ और अक्टूबर १९४९ । २. ज्ञानोदय सितम्बर १९५० और दिसम्बर १९५० ।