________________
हिन्दी - जैन साहित्य- परिशीलन
हरिचन्द्र, 'वादीभासिह, धनजय, "महासेन, जयकीर्त्ति वाग्भट्ट आदि संस्कृत कवियोंका; आचार्य "पूज्यपाद, देवनन्दी और 'शाकटायन प्रभृति वैयाकरणोका एवं बनारसीदास, भगवतीदास आदि हिन्दी भाषा के कवियोका अन्वेषणात्मक परिचय लिखा है ।
१२२
सास्कृतिक इतिहासकी दृष्टिसे प्रेमीजीने तीर्थक्षेत्र, वश, गोत्र आदिके नामोका विकास तथा व्युत्पत्ति, आचारशास्त्र के नियमोका भाग्य एव विविध सस्कारो का विश्लेपण गवेषणात्मक शैलीमे लिखा है । अनेक राजाओंकी वंशावली, गोत्र, वश-परम्परा आदिका निरूपण भी प्रेमीजीने एक शोधकर्त्ता के समान किया है।
प्रेमीजीकी भाषा प्रवाहपूर्ण और सरल है। छोटे-छोटे वाक्यो और ध्वनियुक्त शब्दोकै सुन्दर प्रयोगने इनके गद्यको सजीव और रोचक बना दिया है । शब्दचयनमें भाव व्यंजनाको अधिक महत्त्व दिया है। एक पत्रकार और शोधकके लिए भापामे जिन गुणोंकी आवश्यकता होती है, वे सब गुण इनके गद्यमे पाये जाते हैं । इनकी गद्य लेखनशैली स्वच्छ और दिव्य है । दुरूइसे दुरुह तथ्यको बड़े ही रोचक और स्पष्ट रूपम व्यक्त करना प्रेमीनकी स्वाभाविक विशेषता है ।
ऐतिहासिक निबन्ध लेखकोमे श्री जुगलकिशोर मुख्तारका नाम भी आदर से लिया जाता है। मुख्तार साहव भी जैन साहित्यके अन्वेपणकर्त्ताओमे अग्रगण्य हैं, अबतक आपके ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण निबन्ध लगभग १००, १५० निकल चुके हैं । कवि और आचार्योंकी जैन साहित्य और इतिहास पृ० ४७२ । २. क्षत्रचूडामणि ( भूमिका ) १९१० । ३. जैनसाहित्य और इतिहास पृ० ४६४ । ४. जैनसाहित्य और इतिहास पृ० १२३ । ५, अनेकान्त १९३१ । ६. जैनसाहित्य, और इतिहास ( पृ० ४८२ । ७. जैनहितैषी १९२१ । जैनहितैषी १९१६ । ९, बनारसीविलास की भूमिका |
१.
6.