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________________ निबन्ध-साहित्य परम्परा, निवास-त्थान और समय निर्णय आदिकी शोध करनेमे आपका अद्वितीय स्थान है। मुख्तार साहवकै लिखनेकी शैली अपनी है। वह किसी भी तश्यका स्पष्टीकरण इतना अधिक करते है कि जिससे एक साधारण पाठक भी उस तथ्यको हृदयगम कर सकता है। आपने विद्वतापूर्ण प्रत्तावनाओम जैन सस्कृति और साहित्यके अपर अद्भुत प्रकाश ाला है। श्री पूज्यपाद और उनका समाधितन्त्र', भगवान् महावीर और' उनका समय, पात्रकेवारी और विद्यानन्द, कविराजमल्लका पिंगल' और राजा-मारमल्ल, तिलोयण्णाति और यतिवृषभ, कुन्दकुन्द और यतिवृषभमे पूर्ववर्ती कौन है ? आदि निवन्ध महत्त्वपूर्ण हैं। "पुरातन जैनवाक्य" सूचीकी प्रस्तावना ऐतिहासिक तथ्योंका भाण्डार है। इतिहास-निर्माता होनेके साथ-साथ मुख्तार साहब सफल आलोचक भी है। आपकी आलोचनाएँ सफल और खरी होती है "ग्रन्थपरीक्षा" आपका एक आलोचनात्मक वृहदान्थ है जो कई भागोमे प्रकाशित हुआ है। हिन्दी गद्यके विकासमें मुख्तार साहबका महत्वपूर्ण स्थान है । मुख्तार साहवकी गयशैलीकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह एक ही विषयको बार-बार समझाते चलते हैं। इसी कारण कुछ लोग उनकी शैलीम भाषाकी बहुलता और विचारोकी अल्पताका आरोप करते हैं; पर वास्तविकता यह है कि मुख्तार साहब लिखते समय सचेष्ट रहते हैं कि कहीं भावोकी व्यजनामें अस्पष्टता न रह जाय, इसी कारण यथावसर विषयको अधिक स्पष्ट एव व्यापक करनेको तत्पर रहते है। आपकी भाषा में साधारण प्रचलित उर्दू शब्द भी आ गये है। मुख्तार साहब भाषाके 1. जैनसिद्धान्तमास्कर भाग पाँच पृष्ठ ।। २, अनेकान्त वर्ष, पृ. २। ३. भनेकान्त वर्ष ०६-१. अनेकान्त वर्ष ४ पृ. ३०३। ५. वर्णी अभिनन्दन अन्य पू० ३२३ ।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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