________________
निबन्ध-साहित्य
है कि इस प्रकरणमे उसका परिचय देना शक्ति से बाहरकी बात है । समग्र निबन्ध साहित्यका समुचित वर्गीकरण करना भी टेढी खीर है ।
हिन्दी भाषामे लिखित जैन निवन्ध साहित्यको ऐतिहासिक, पुरातत्वात्मक, आचारात्मक, दार्शनिक, साहित्यिक, सामाजिक और वैज्ञानिक इन सात भागो में विभक्त किया जा सकता है । यो तो विषयकी दृष्टिसे जैन निबन्ध- साहित्य और भी कई भागोमे वॉटा जा सकता है, परन्तु उक्त विभागो द्वारा ही निबन्धोका वर्गीकरण करना अधिक अच्छा प्रतीत होता है।
ऐतिहासिक
ऐतिहासिक निबन्धोकी संख्या लगभग एक सहल है । इस प्रकार के निबन्ध लिखनेवालोमे सर्वश्री नाथूराम प्रेमी, प० जुगलकिशोर मुख्तार, पं० सुखलालजी सघवी, मुनि जिनविजय, मुनि कल्याणविजय, श्री बाबू कामताप्रसाद, श्री अयोध्याप्रसाद इ गोयलीय, प० कैलाशचन्द्र शास्त्री, प्रो० हीरालाल, प्रो० ए० एन० उपाध्ये, प० के० भुजबली शास्त्री, प्रो० खुशालचन्द्र गोरावाला आदि है । विशुद्ध इतिहासकी अपेक्षा जैनाचार्यों, जैनकवियों एव अन्य साहित्य निर्माताओका शोधात्मक परिचय लिखनेमे श्री प्रेमीजीका अधिक गौरवपूर्ण स्थान है । प्रेमीजीने स्वामी 'समन्तभद्र, 'आचार्य प्रभाचन्द्र, 'देवसेन सूरि, 'अनन्तकीर्ति आदि नैयायिकोंका आचार्य जिनसेन और 'गुणभद्र प्रभृति संस्कृत भाषाके आदर्श पुराण- निर्माताओका ; आचार्य पुष्पदन्त 1 और 'विमलसूरि आदि प्राकृतभापार्क पुराण - निर्माताओ का 'स्वयभू
;
;
{
तथा १० त्रिभुवन स्वयंभू प्रभृति प्राकृत भाषा के कवियोका ; कविराज
1
፡
<
'
'
१२१
१. विद्ररत्नमाला पृ० १५९ । २. अनेकान्त १९४१ । ३. जैन हितैपी १९२१ । ४. जैनहितैषी १९१५ ।५, हरिवंश पुराणकी भूमिका } १९३० । ६. जैनहितैषी १९११ । ७. जैन साहित्य संशोधक १९२३ ।
८. जैन साहित्य और इतिहास पृ० २७२।९-१०, जैन साहित्य और इतिहास पृ० ३७० |