SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाटक का त्याग कर दिया | स्वप्नमे चक्रेश्वरी देवीने उसे सात्वना प्रदान की और अकलकदेवको बुलानेका आदेश दिया । दूसरे दिन अचानक ही अकलकदेवका राजसभामे आगमन हुआ। दोनों वर्मका विवाद आरंभ हुआ | कई दिनोतक अकलकका राजगुरुके साथ शास्त्रार्थ होता रहा पर जय-पराजय किसीको भी न मिली । अतः चिन्तित होकर उन्होने चक्के श्वरी देवीकी आराधना की । देवीने कहा-पटेंके अन्दरसे तारा देवी बोल रही है, अतः दुबारा उत्तर पूछनेपर वह चुप हो जायगी। चक्रेश्वरी देवीने और भी पराजयके लिए अनेक वाते वतलाई । अगले दिन राजगुरु शास्त्रार्थमे पराजित हुए और धूमधामसे रथ निकाला गया। इस नाटकके कथानकमे मूल कथानकको छोड, व्यर्थ प्रसग नहीं है। आरभमें मगलाचरण तथा सूत्रधार और नटीका आगमन हुआ है। इसमे तीन अक है और दृश्य-परिवर्तन भी यथायोग्य हुए है । यद्यपि शैली प्राचीन ही है। फिर भी कथोपकथन तथा पात्रोका चरित्र-चित्रण अच्छा हुआ है । यह नाटक अभिनय योग्य है। ____ अकलक देवके इसी आख्यानको लेकर श्री पं० मक्खनलाल जी दिल्ली वालेने भी "अकलंक" नामका एक नाटक लिखा है । यह भाव और भाषाकी दृष्टिसे साधारण है तथा अभिनय गुण इसकी प्रमुख विशेषता है । गीतिकाव्यकी दृष्टि से साधारण होनेपर भी सरस है। सामाजिक, धार्मिक और राष्ट्रिय तत्त्वोके आधार पर काल्पनिक कथानकको लेकर यह नाटक लिखा गया है। इसके सपादक श्री प० महेन्द्रकुमार - अर्जुनलाल सेठी है। इसमे गृह और समाजका साकार र चित्र मिलता है। शराब और मदके प्यालेको पीकर धनिकपुत्र समाजको बरबाद कर देते है। परिवार जुआ और सहा वगैरहम फॅसकर कलहका केन्द्र बनता है। पूंजीपतियोका मनमाना व्यवहार, दहेजकी भयानकता, अपटूडेट महिलाओकी कटुता आदि समाजिक बुराइयोका परिणाम इसमे दिखलाया है।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy