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हिन्दी - जैन- साहित्य- परिशीलन
विज्ञताका परिचायक है । इनके सभी नाटकका आधार सास्कृतिक चेतना है । जैन संस्कृतिके प्रति लेखककी गहन आस्था है । इसलिए उसने उन्हीं मार्मिक आख्यानोको अपनाया है, जो जैन संस्कृतिकी महत्ता प्रकट कर सकते हैं।
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प्रहसनोंमें "कृपणदास" और "रामरस" अच्छे प्रहसन है । "रामरस" जीवनके उत्थान - पतनकी विवेचना करनेवाला है । कुसगति मनुष्यका सर्वनाश किस प्रकार करती है यह इस प्रहसनसे स्पष्ट है ।
रूपकात्मक नाटक लिखनेकी प्रथाका जैन साहित्य-निर्माताओंने अधिक अनुसरण किया है । संस्कृत-साहित्यमे कई नाटक इस शैली के लिखे गये है । काम, क्रोध, लोभ, मोहके कारण मानव निरन्तर अगान्त होता रहता है । अतः अहिंसा, दया, क्षमा, संयम और विवेककी जीवनोस्थानके लिए परम आवश्यकता है । हिन्दी भाषाके कलाकारोने संस्कृतके रूपकात्मक कई नाटकोका हिन्दीमें अनुवाद किया है। इस शैली के अव तकके अनूदित जैन नाटकोंमे निम्न दो नाटक मुझे अधिक पसन्द है । अतएव यहाॅ इन दोनो नाटकका परिचय दिया जा रहा है ।
इस नाटकका हिन्दी अनुवाद श्री पं० नाथूराम प्रेमीने किया है। अनुवादमं मूलभावोकी अक्षुण्णताके साथ प्रवाह है । पद्य ब्रजभाषा और खड़ीबोली दोनोंही भाषाओंमें लिखे गये है। अन्
ज्ञानसूर्योदय
दित होने पर भी इसमे मौलिक नाटकका आनन्द प्राप्त होता है । इसकी कथावस्तु आध्यात्मिक है । इसमें नाटकीय ढगसे ज्ञानकी महत्ता बतलाई गई है ।
इस नाटक में पात्रोका चरित्रचित्रण और कथोपकथन दोनो बहुत सुन्दर है । शास्त्रीय नाटक होनेसे नान्दीपाठ, सूत्रधार आदि हैं। मति और विवेकका वार्तालाप कितना प्रभावोत्पादक है, यह निम्न उद्धरणोसे स्पष्ट है।
१. जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, बम्बई । सन् १९०९