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________________ हिन्दी-जैन-साहित्य परिशीलन एक साधारण शिक्षित पाठक भी इन कहानियाँका रसास्वादन कर सत्ता है । अभिव्यञ्जना इतने चुभते हुए ढंगसे हुई है, जिससे आख्यानात्रा उद्देश्य ग्रहण करनेमें हृदयको तनिक भी श्रम नहीं करना पड़ता । मिर्गी डली मुहम डालते ही धीरे-धीरे घुलने लगती है और मिठास अपने आप भीतर तक पहुंच जाती है। "इन्त बड़ी या रुपया" कहानांनी निन्न पंनिया दर्शनीय है चचा हल कर बोले-“भई जितनी बात लिखनेकी थी, वह तो लिख ही दी थी। मेरा ख्याल था तुम समझ जाओगे कि कोई नई बात जल है । वनां दा आनके पुराने अगोछेके लिए दो पैसका कार्ड श्रीन खराब करता ? और रुपयाँका विक्र तान-बूझ कर इसलिए नहीं किया कि अगर कोई उठा ले गया होगा तो भी नम अपने पास है जाभोगे । अपनी इस मसावधानी के लिए नुम्हें परेशानी में डालना मुझं इष्ट न था।" जन सन्देशम श्री गहरके नामने प्रकाशित कथाएँ, जिनके रास्ता श्री पं० बलमद्रनी न्यायतीर्थ है, सुन्दर हैं। इन कथाम कणसाहित्य तलोंके गय जीवनी उठान भावनाओं मी सुन्दर चित्रग हुआ है। गेली प्रवाहपूर्ण है, भाषा परिमान्ति और नुचित है। किन्तु आरामक प्रयास होने कारण कथानक, संवाद और चरित्र-चित्रणम कलाने विकासका कुछ कमी है। जैन कथा साहित्यमें अनुपम स्लॉके रहनेपर मी,अभी इस क्षेत्रमं नाम विकामची आवश्यकता है। यदि जैन कथाएँ आनकी चलीमें लिली गयें तो इन कथाओंसे मानवका निश्चयसे नैतिक उत्थन हो सकता है। आज तिनोड़ियाँम बन्द इन रत्लॉको साहित्य-संसारकै सम्व रख्ननी और लेखकाँको अन्य ध्यान देना होगा | केवल ये न जन सम्मानकी निधि नहीं है, प्रत्युत इन पर मानव मात्रा स्वत्व है।
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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