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________________ कथा-साहित्य "भोजन के समय एकके भागे घास और दूसरेके आगे भुस रख दिया गया । पण्डितोंने देखा तो भागबबूला हो गये । सेठ जी ! हमारा यह अपमान !" १०५ "महाराज ! आप ही लोगोंने तो एक दूसरेको गधा और बैल बतलाया है ।" 'क्या सोचे' कथामे लेखकने बड़े ही कौशलसे सासारिक विषयोके चिन्तन से विरत होने का संकेत किया है । जिस बातको वह कहना चाहता है, उसे उसने कितनी सरलतापूर्वक कलात्मक ढगसे व्यक्त किया है । "एक ध्यानाभ्यासी शिष्य ध्यानमें मग्न थे । और दाल-बाटी आदि बनाकर आस्वादन करनेका चिन्तन कर रहे थे कि अचानक उसके मुखसे सीकारे की-सी आवाज निकल पडी ।" पासमे बैठे हुए गुरुदेवने पूछा"चन्स क्या हुआ ?" शिष्य-- "गुरुदेव, मैने आज ध्यानमें दाल-बाटी बनानेका उपक्रम किया था और मिर्च तेज हो जानेसे आस्वादन करनेमे सीकारेको आवाज निकल पडी और मेरा ध्यान टूट गया। मै यह न जान सका कि यह सव उपक्रम कल्पना मात्र है । आप ऐसा आर्शीवाद दें, जिससे इससे भी ज्यादा ध्यान-मग्न हो सकूँ ।" गुरुदेव मुस्कराकर बोले- " वत्स ! ध्यानका चिपय आत्मचिन्तन है, दाल-बाटी नही । उससे ध्यान सार्थक और आत्मकल्याण संभव है । व्यर्थकी वस्तुओंको त्यागकर हितकारी चीज़ोंको ही अपने अन्दर स्थान दो ।" 'हियेकी आँखोंसे' गोयलीयने जिन रत्नोंको खोना है, उनकी चमक अद्भुत है । अधिकाश रचनाएँ भार्मिक और प्रभावशाली है । भाषा और गैलीकी सरलता गोयलीयकी अपनी विशेषता है । उर्दू और हिन्दीका ऐसा सुन्दर समन्वय अन्यत्र शायद ही मिल सकेगा । यही कारण है कि
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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