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हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन उधर धान्य-उत्पादक, हरे-भरे तथा अंकुरित खेत ! जहाँ-तहाँ अनवरत परिश्रमके भादी ; विश्वके अन्नदाता-कृषक !...कार्यमें संलग्न और सरस तथा भुक छन्दकी तानें अलापने में व्यस्त ! सधन वृक्षोंकी छायामें विश्राम लेनेवाले सुन्दर मधुभापी पक्षियोंके जोड़े ! अषण-प्रिय मधुस्वरसे निनादित वायुमण्डल !...और समीरकी प्राकृतिक आनन्द दायक झंकृति..."
"महा-मानव धन्यकुमार चला जा रहा था, उसी पगडण्डीपर। प्रकृतिकी रूप-भंगिमाको निरखता, प्रसन्न और मुदित होता हुआ ! क्षण-प्रतिक्षण जिज्ञासाएँ बढती चलतीं ! हृदय चाहता-'विश्वकी समस्त ज्ञातव्यताएं उसमें समा जाय ! सभी कला-कौशल उससे प्रेम करने लगे।'...नया खून जो ठहरा ! सुख और दुलारकी गोदमें पोषण पानेवाला ____ 'भ्रातृत्व' कथामे भगवत्नीने मरुभूति और विश्वभूतिके पौराणिक कथानकमे एक नवीन जान डाल दी है। प्रतिशोधकी बलवती भावनाका चित्रण इस कथामें हुआ है । कलाकारने पात्रोंका चरित्र चित्रित करने में अभिनयात्मक शैलीका प्रयोग किया है, जिससे कथाओंमें जीवटता आ गयी है। तर्कपूर्ण और तथ्य विवेचनात्मक शैलीका प्रयोग रहनेपर मी सरसता कथाओकी ज्योंकी त्यो है। चलती-फिरती भाषाके प्रयोगने कहानियाँको सरल व बुद्धिग्राह्य बना दिया है।
'ज्ञानोदय मे श्री प्रो० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्यकी चार-पाँच कहानियाँ प्रकाशित हुई थीं । श्रमण प्रभाचन्द्र, जटिल मुनि और बहुरूपिया कहानी अच्छी हैं । यद्यपि 'श्रमण प्रभाचन्द्र'मे बीच-बीचमे संस्कृतके श्लोक उद्धृत कर कथाके प्रवाहको अवरुद्ध कर दिया है, तो भी उद्देश्यकी दृष्टिसे कहानी अच्छी है । इस कथाका उद्देश्य वर्णव्यवस्थाका खोखलापन दिखलाकर समता और स्वातन्त्र्यका सन्देश देना है। चरित्र-चित्रणकी दृष्टिसे यह कहानी सदोष है। टेकनिकका अभाव है।