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कथा-साहित्य
परिचय देती है । उसके तेजसे देवोके विमान रुक जाते है, वे उस सतीको अपने धर्मसे अटल समझ उसकी सब तरहसे सहायता करते है तथा उसे सकटमुक्त कर देते हैं । विश्ववन्द्य नारीके इस कर्मका प्रभाव सभीपर पड़ता है, सभी उसका यशोगान करने लगते है ।
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'अनुगामिनी' में नारी पुरुषकी अनुगामिनी होकर अपना उज्ज्वल आदर्श रखती है, उसे भोगकी अभिलाषा नही है । जब वज्रबाहुकी तीव्र विषय-वासनाकी कडियाँ मुनिराजके दर्शन मात्रसे टूटकर गिर पडती हैं और उसके अन्तरमे विरागकी उज्ज्वल आभा चमक उठती है, तब वह अपनी प्रिय पत्नी और वैभवको त्याग योगी हो जाता है । अपने पतिको इस प्रकार विरक्त होते देखकर रानी मनोरमा भी अपने पति और भाईका अनुसरण करती है। सासारिक प्रलोभन और बन्धनोको छिन्न-भिन्न कर देती है ।
'मानवी' सकलनमे भाषा, भाव, कथोपकथन और चरित्र-चित्रणकी दृष्टिसे लेखकको पर्याप्त सफलता मिली है। पुराने कथानकोको सजाने और सँवारनेमे कलाकारकी कला निखर गयी है। सभी कहानियोंका आरम्भ उत्सुकतापूर्ण रीतिसे हुआ है । कहानियोमें रहत्यका निर्वाह भी उत्सुकता जाग्रत करनेमे सक्षम है । विशेषतः तीव्रतम स्थिति (Climax) ज्यो-ज्यो निकट आती है, कहानीमे एक अपूर्व वेगका सचार होता है, जिससे प्रत्येक पाठककी उत्सुकता बढ़ती जाती है। यही है भगवत्की कला, उन्होने परिणाम सोचनेका भार पाठकोके ऊपर छोड दिया है । श्री भगवत्की अन्य फुटकर कहानियो में 'अहिंसा परमो धर्मः', 'उस दिन', 'शिकारी' और 'भ्रातृत्व' आदि कहानियाँ सुन्दर है। 'उस दिन' कहानीमे कला पूर्णरूपसे विद्यमान है । कथाका आरम्भ कितने कलापूर्ण ढगसे हुआ है
"स्वच्छ आकाश ! शरीरको सुखद धूप । नगरसे दूर रम्य प्राकृतिक, पथिकोंके पदचिन्हो से बननेवाला गैरकानूनी मार्ग पगडण्डी । इधर
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