SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी-जैन-गीतिकाव्य मंगल भारती आतम राम । तन मंदिर मन उत्तम राम । समरस जल चन्दन आनंदा तन्दुल तत्त्वस्वरूप अमन्द ॥ ॥ मंगल आरती०॥ सनसार फूलनकी माल । अनुभौ सुख नेवन भरि थाल ॥ मंगल आरती० ॥ दीपक ज्ञान ध्यानकी धूप । निर्मल भाव महाफल रूप । __ मंगल आरती० ॥ सुगुन भविक जन इक रंग लीन । निहचै नौधा भगति प्रवीन ॥ मंगल भारती०॥ धुनि उत्साह सु अनहद म्यान । परम समाधि निरत परधान ॥ मंगल आरती० ॥ वाहज आतम भाव वहाव । अंतर है परमातमध्याव ॥ ___मंगल आरती० ॥ साहव सेवक भेद मिटाय । 'धानत' एकमेव हो जाय ॥ मंगल भारती० ॥ कवि दौलतराम उन गीतिकाव्य-रचयिताओमे से हैं, जिन्होने जीवनको खूब चारीकियोमे देखा है, उनकी विविध प्रवृत्तियोंकी गहराईमे उतर दौलतरामके पद : _ कर अनुशीलन किया है। मनकी गूढ़ और विविध परिचय और * दशाओंका समाधान करते हुए कवि अनुभव करता है कि क्या वात है कि जिससे मानव जीवन बोझिल और त्रस्त है ? कल्पना, विचार और भावनाकी त्रिवेणीमें निमजन कर निश्चय किया कि मानव चंचल चित्त के कारण ही कान्त एवं त्रस्त है। कभी यह दिव्य अगनाओका आलिंगन करना चाहता है, तो कभी सुन्दर नृत्य देखनेके लिए लालायित है । एक आकाक्षा तृप्त नहीं होती, कि दूसरी अनन्त आकाक्षाएँ उत्पन्न हो जाती है । मनकी गति पवनसे भी अधिक चंचल है, इसपर अंकुश रखे बिना कोई भी
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy