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________________ समीक्षा हिन्दी-जैन साहित्य-परिशीलन नही, मस्ती है; अवसाद नही, औत्सुक्य है; कर्कशता नहीं, तीव्रता है और शानरताय पर उच्छृङ्खलता नहीं, आस्था है। इन्होने अपने भक्ति सूचक पदोमे जीवनको अन्तर्वृत्तिकी ऐसी सुन्दर अभिव्यजना की है, जिससे बोध-वृत्ति जाग्रत हुए " बिना नहीं रहती। इनकी भावुकता सरस, सरल और सहज है । पदोमे तथ्योका विवेचन दार्शनिक शैलीमें नहीं किया गया है, किन्तु काव्य-शैलीका प्रयोग कर कविने मानवप्रवृत्तियोके उद्घाटनमे अपूर्व सफलता प्राप्त की है। तीव्र आलोक और प्रखर प्रवाह दो चार पदोमे ही उपलब्ध है, अधिकाश, पदोमे वैयक्तिकता या अधिकरणनिष्ठताका आधार ही प्रधान है। कविने अपनी आनन्दानुभूतिको प्रत्येक पदमें व्यक्त करनेका प्रयास किया है। इनके सकलित पदोंको छः श्रोणियोंमे विभक्त किया जा सकता है बधाई, स्तवन, आत्मसमर्पण, आश्वासन, परत्ववोधक एव सहन समाधिकी आकामा । बधाई-सूचक पदोमे तीर्थकर ऋपमनाथके जन्म-समयका आनन्द व्यक्त किया है। प्रसगवश प्रभुके नखशिखका वर्णन भी जहां-तहाँ उपलब्ध है। अपने इष्टदेवके जन्म-समयका वातावरण और उस कालकी समस्त परिस्थितियोको स्मरण कर कवि आनन्द-विभोर हो जाता है और होन्मत्त हो गा उठता है माई आज आनंद या नगरी ॥ टेक ॥ गजगमनी शशिवदनी तरुनी, मंगल गावति है सगरी माई० ॥ नाभिराय घर पुन्न भयो है,किये हैं अजाचक जाचक री ॥माई ॥ 'धानत' धन्य कूख भरुदेवी, सुर सेवत जाके पगरी । माई.॥ द्वितीय श्रेणीके पदोंमें अपने आराध्य पचपरमेष्ठीकी नाना प्रकारसे स्तुति की है। इस श्रेणीके पदोमे उपमानोका आश्रय लेकर अपने इष्ट देवको प्रसन्न करनेका प्रयास कविने किया है। आरती स्तुतिका ही एक रूप है, अतः अपनी विश्वव्यापिनी आरती करता हुआ कवि कहता है ।
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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