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________________ हिन्दी - जैन- साहित्य-परिशीलन बुद्धि, राग और कल्पना तत्त्वका समन्वय, अनुभूतिका सन्तुलन, भाव और भाषाका एकीकरण, लय और तालकी मधुरता एवं भावगाम्भीर्य और कोमल-कान्त-पदावली बनारसीदास के पदोंम वर्तमान है। भैया भगवतीदासने अपने पदोंमें सहजानुभूतिकी अभिव्यजना की है। इनके पदो चिन्तनके स्थानमें आध्यात्मिक उल्लासकी अनुभूति प्रधान है। उन्होने मानव पर्यायको प्रकृतिने सुन्दर मगलमय, मधुर और आत्मकल्याणमें सहायक माना है । इसी कारण अपने हृदय - कुंजम मदिरभाव विहंगों का कृजन सुनकर इन्होंने संसारके सम्बन्धोकी अस्थिरताका साक्षात्कार कराया है । आध्यात्मिक उन्मेपसे कविका प्रत्येक पद प्रभावित है । आकाद्यमे घुमड़नेवाले बादलोंके समान क्षणभंगुर वासनाओं, जो कि प्रत्येक व्यक्तिकै मानसको आन्दोलित करती रहती हैं, का कविने पढोमे सूक्ष्म विश्लेषण किया है । अतः चिन्तनशील होकर कवि जीवनके मूलभूत तत्त्वोंका उद्घाटन करता हुआ कहता है ८२ भैया भगवती दास के पद : परिचय और समीक्षा afs अभिमाननिय रे, छाँड़ि दे अभि० ॥टेक॥ काको तू अरु कौन तेरे, सब ही हैं महिमान | देख राजा रंक कोऊ, थिर नहीं यह थान जिय रे० ॥ ॥ जगत देखत तोरि चलचो, तू भी देखत आन । घरी पलकी खबर नाहीं, कहा होय विहान लिय २०॥२॥ त्याग क्रोध रु लोभ माया, मोह मंदिरा पान | राग दोपहिं दार अन्तर, दूर कर अज्ञान || लिय २०॥३॥ भयो सुरपुर देव कहूँ, कयहुँ नरक निदान | इम कर्मवा बहु नाच नाचे, भैया आप पिछान ॥जिय रे० ॥४॥ इनके पदोंका संग्रह ब्रह्मविकास तथा फुटकर संकलनके रूपमें प्रकाशित हुआ है । प्रभाती, स्तवन, अध्यात्म, वस्तुस्थितिनिरूपण,
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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