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हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन तबहिं पावढी देखि चोर भूपति निज जान्यौ । देखि मुद्रिका चोर तबै मन्त्री पहिचान्यो । सूत जनेऊ देखि चोर मोहित है भारी। पंचनि लखि विरतान्त यहै मनमें जु विचारी ॥ भूपति यह मन्त्री सहित प्रोहित युत काढी दयौ । इह भाति न्याव करि भलिय विधि धर्म थापि जग जस लयौ ॥
इस प्रकार कथा-काव्य मनोरजनके साथ आदर्श प्रस्तुत करते है, जिससे कोई भी व्यक्ति अपने जीवनका उत्कर्ष कर सकता है।