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हिन्दी - जैन- साहित्य- परिशीलन
भूपन बारह भाँतिनके अंत, कण्ठमै ज्योति से अधिकारी । देखत सूरज चन्द्र छिपे, मुख दाडिम दंत महाछविकारी ॥
भाषा ब्रन, मुन्देली और खड़ी बोलीका मिश्रित रूप है । उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अतिशयोक्ति अल्कारोंका प्रयोग अनेक स्थलो पर किया गया है।
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१७ वी शती रायमल्लके प्रद्युम्नचरित और सुदर्शन चरित, १९ वीं शतीमें ज्ञानविजयका मल्यचरित, नथमल वित्ालाके नागकुमारचरित और जीवन्धर चरित; सेवाराम के हनुमच्चरित, शान्तिनाथ पुराण और भविष्यदत्त चरित एव भारमलके चारुदत्तचरित और समव्यसनचरित चरित-काव्य है । कवियोने इन काव्योमे मानव जीवनकी सुन्दर अभिव्यंजना की है।
हिन्दीके कथाकाव्योमें पद्यात्मक दो कथासग्रह बहुत प्रसिद्ध हैंआराधनाकथाकोश और पुण्यासवकथाकोश | भारमलकी कई कथाएँ जो कि प्रवन्धकाव्यके रूपमे लिखी गयी हैं, बड़ी ही रोचक और हृदयस्पर्शी हैं। शीळकथा, दर्शनकथा, एव निशिभोजनत्याग कथा तो अत्यन्त लोकप्रिय है । आराधनाकथाकोशमें १२९ कथाओका सग्रह और पुण्यासवकथाकोशमे ५६ कथाभोका सग्रह है ।
मानव विकासके साथ उसकी इच्छाशक्ति और जिज्ञासावृत्ति भी विकसित होती है । यहीं वृत्ति मानवको कथा सुनने और कहने के लिए बाध्य करती है । कुशल कलाकार कथाओंको भी काव्यका रूप दे देते हैं, वे इन्हे इतना रोचक और सरस बनाते हैं जिससे ज्ञानकी मरुभूमिको पार करते समय पाठक ऊब न जाय और वह बीच-बीचमे वृक्षोकी छायासे आच्छादित सरोवरोके निकट बैठकर शान्ति लाभ कर सके ।
पुण्यास्तव कथाकोशकी कथाऍ वड़ी ही रोचक, हृदयको छूनेवाली और मर्म-वेदनाको प्रकट करनेवाली हैं। लेखकने इनसे पाप-पुण्यके फलका भी विवेचन किया है । आजकलकी कहानी के समान जीवन के किसी